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रविवार, 23 जुलाई 2017

मेरे गाँव ------ कविता


मेरे  गाँव  ------------ कविता --
तेरी  मिटटी  से बना   जीवन  मेरा -
तेरे  साथ  अटूट  है  बंधन   मेरा ,
 तुझसे  अलग कहाँ कोई  परिचय मेरा ?
 तेरे संस्कारों  में पगा तन -मन मेरा !!

नमन  तेरी सुबह  और  शाम  को-
तेरी धरती, तेरे  खेत -  खलिहान  को ,
तेरी गलियों , मुंडेरों  का  कहाँ  सानी कोई  ?
 वंदन  मेरा  तेरे  खुले  आसमान को  ;
तेरे   उदार परिवेश  की  पहचान मैं-
तेरी  यादें अनमोल  संचित  धन  मेरा !!

जब  कभी  तेरे सानिध्य  में लौट  आती हूँ मैं-
तब  - तब नई उमंग  से भर जाती  हूँ मैं ,
तेरी    गलियों   मे विचर उन्मुक्त  मैं  --
बीता बचपन फिर से  जी  जाती हूँ मैं ;
लौट जाती हूँ फिर  नम  आँखों  से   -
 आँचल  में  भर   अपनापन तेरा !!

मन -आँगन  में  तेरे  रूप का  हरा  सा  कोना है
 मुझ   विकल  का   वही स्नेह भरा  बिछौना है ;
नित   निहारूं   मन की आँखों  से तुझे-
जिन में  बसा  ये  तेरा  रूप  सलोना है-
जब  -जब  आऊँ  तुझे   नजर  भर देखने
पाऊँ महकता  स्नेह भरा  उपवन तेरा  !!
 
ना  आये  बला कोई   तुझपे- ना हो  कभी बेहाल तू,
ले दुआ बेटी की  -सदा रहे    खुशहाल तू  ;
रौशन  रहे  उजालों से   सुबह -शामें   तेरी
 सजा  नित अपनी चौखट पे ख़ुशी   की ताल  तू
लहराती  रहें हरी -  भरी फसलें  तेरी-
 मुरझाये ना कभी - ये हरियाला  सावन  तेरा !!!

तुझसे  अलग कहाँ कोई  परिचय मेरा ?
 तेरे संस्कारों  में पगा तन मन मेरा !!!!!!!!!!!
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24 टिप्‍पणियां:

  1. अपनी मिट्टी से गहरा जुड़ाव सफल जीवन की मजबूत नींव होती है। यह अपनत्व हमें कभी अधूरा नहीं रहने देता। सुंदर भावनाओं से रंगी कविता। बधाई

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    1. हार्दिक आभार आपका आदरणीय पुरुषोत्तम जी |

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  2. वाह !
    बहुत सुंदर !
    व्यथित मन को सुकून देती गाँव की यादें ताज़ा करती मर्मस्पर्शी प्रेरक रचना। बधाई एवं शुभकामनाऐं आदरणीय रेणु जी।

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    1. आदरणीय रविन्द्र जी -------- आपके उत्साहवर्धन करते शब्दों के लिए आभारी हूँ |

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  3. रेणु जी,माटी की सोधी सुगंध से भर गया मन,अति सुंदर भाव और शब्द शिल्प से गुंथी आपकी प्यारी सी रचना।

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  4. अपने गाँव का अपनापन भूलता नहीं.

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    1. आदरणीय हर्ष जी ------ गाँव का अपनेपन ही तो हमारे जीवन की अनमोल पूंजी है | आभारी हूँ आपकी जो आपने रचना पढ़ी और इसका मर्म जाना |

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  5. गाँव में जो प्यार अपनापन हैं वो शहरों की भीड़ में कहां.... बहुत उम्दा रचना हैं

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    1. प्रिय शकु --- सचमुच गाँव में अपनापन भी है और मिटटी की खुशबू भी --------- सस्नेह आभार आपको |

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  6. सुंदर भाव 👌👌👌 प्यारी सी रचना।🙏🙏🙏

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  7. बेहतरीन रचना बहुत सुंदर भावों से सजी सच कहा आपने गांव जैसा सुकून कहां मिलता है असली जिंदगी तो बसती है गांव में

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    1. जी अनुराधा जी ,आपने सही कहा भले ही गाँव कितना ही शहरी चोला क्यों ना पहन लें पर वहां सुकून कभी कम नहीं मिलता |

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  8. नमन तेरी सुबह और शाम को-
    तेरी धरती, तेरे खेत - खलिहान को ,
    तेरी गलियों , मुंडेरों का कहाँ सानी कोई ?
    वंदन मेरा तेरे खुले आसमान को ;
    बेहतरीन सृजन आदरणीया... पढ़कर बहुत सुकून मिला मन को👌👌👌👏👏👏

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    1. प्रिय अमित-- आपको रचना पढ़कर तो मुझे आपके शब्द पढ़कर रचना के लिए परम संतोष की अनुभूति हुई | ये मेरे गाँव के लिए मेरे भावुक मन के उदगार हैं | सस्नेह आभार आपका |

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  9. बहुत सुंदर रेनू बहन, गांव का सिर्फ़ चित्रण ही चिताकर्षक नही ,साथ ही स्नेह से सने अप्रतिम भाव जो है गांव से जुडे अनुराग के ।
    आकर्षक और मृदु भावों से सजी रचना ।

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    1. आपने सही कहा कुसुम बहन | गाँव से ये अनुराग ही जीवन का सबसे बड़ा सम्बल है | मैं पिछले साल छुट्टियों में गाँव गयी थी वहां से लौटकर ये रचना लिखी थी | अब की बार जाना ना हो पाया पर ये अनुराग ज्यों का त्यों रहता है | आपने रचना का मर्म पहचाना मन को परम संतोष हुआ | स्नेह भरे उद्गारों के लिए मेरा हार्दिक स्नेह आपके लिए |

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