मेरी प्रिय मित्र मंडली

गुरुवार, 3 अगस्त 2017

शुक्र है गाँव में ------------- कविता --










 शुक्र  है  गाँव में   
इक  बरगद  तो  बचा  है ,
जिसके  नीचे  बैठते    
  रहीम  चचा  हैं !!  
हर आने -जाने वाले को सदायें  देते  हैं   
चाचा  सबकी  बलाएँ  लेते हैं  ,
 धन कुछ  पास  नहीं  उनके   
बस   खूब  दुआएं   देते  हैं   ;  
नफरत   से  कोसों  दूर  है   
चाचा  का  दिल  सच्चा   है   !!  
सिख  - हिन्दू  या  हो  मुसलमान  
चाचा  के  लिए  सब  एक  समान   , 
माला  में मोती  - से   गुंथे  रहें  सब  
यही  चाचा   का  है  अरमान  ;  
समझाते  सबको - एक है वो  मालिक -  
जिसने  संसार   रचा है   !! 
   
बरगद   से  चाचा   हैं  -  
 चाचा   सा   बरगद    है  , 
  दोनों   की    छांव  --   
गाँव  की सांझी विरासत  है ;  
दोनों  ने  गाँव  के  उपवन   को - 
अपने  स्नेह  से सींचा है  !!   
 
शुक्र  है  गाँव में  इक  
 बरगद  तो  बचा  है 
जिसके  नीचे  बैठते   -
  रहीम  चचा  हैं !!  !!!!!!!!!  

38 टिप्‍पणियां:

  1. "शुक्र है गाँव में इक बरगद तो बचा है" - शुक्र है कुछ ऐसी विचारथाराएँ आज भी कहीं न कहीं जिन्दा है जो सामाजिक समरसता को बखूबी खुद में समेटकर सौहाद्र का माहौल कायम रखे है। बरगद और रहीम चाचा के माध्यम से रची गई यह रचना अच्छी लगी। धन्यवाद।

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    1. आदरणीय पुरुषोत्तम जी -- आपने रचना का उद्देश्य और अंतर्निहित भाव दोनों पहचाने -- मुझे बहुत ख़ुशी है | आपका सादर हार्दिक आभार -----------

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  2. धार्मिक सौहार्द्र और आपसी मेलजोल की वजह से ही गाँवों में असली भारत देखने को मिलता है । ये भी सच है कि पुराने वटवृक्षों की तरह ही गाँव की बुजुर्ग पीढ़ी सबको अपनी छाँव में रखती है बिना किसी भेदभाव के ! सादगी भरा ये अंदाज मुझे बहुत अच्छा लगा रेणुजी।

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    1. आदरणीय मीना जी -- आपके सुंदर शब्दों से बहुत उत्साहवर्धन हुआ है -- हार्दिक आभार आपका --

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  3. अब गाँव भी पहले से नहीं रहे.....पुराना बरगद और रहीम चाचा......शुक्र है....
    यादें है ....बहुत ही स्मृति परक सुन्दर रचना....

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    1. आदरणीय सुधा जी -- बहुत सही कहा -- आपने गाँव अब वैसे नहीं रहे-- पर फिर भी गांवों में आज भी बरगद और बुजुर्ग मान बरकरार है -- रचना पर आप के सशक्त चिंतन के लिए आभारी हूँ आपकी -

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  4. आज के धर्मांध वातावरण में एक ताज़ा हवा सी है आपकी अभिव्यक्ति...बहुत प्रभावी रचना...बधाई

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    1. आदरणीय कैलाश जी ---------- स्वागत करती हूँ आपका अपने ब्लॉग पर -- - आपके शब्दों से अभूतपूर्व उत्साह मिला है -- जिसके लिए आपकी आभारी हूँ |

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  5. आपकी लिखी रचना  "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 9 अगस्त 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  6. आदरणीय रेणु जी काबिलेतारीफ़ रचना की है एकता का मूल्य बताती आपकी अनुपम कृति। हमने तरक़्क़ी तो कर ली परन्तु हम इंसान से जानवर बनते जा रहें हैं। आप से निवेदन है अपने ब्लॉग पर अनुसरणकर्ता का विकल्प संयोजित करें जिससे हमें आपकी रचनाओं के प्रकाशन की सूचना निरंतर मिलती रहे। आभार ,
    ''एकलव्य''

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    1. हार्दिक धन्यवाद प्रिय एकलव्य आपको -- आपने ब्लॉग की अहम् बात की और ध्यान दिलाया आपका बहुत आभार -----

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  7. वाह ! बरगद और रहीम चचा ! बहुत सुंदर प्रस्तुति आदरणीया । बहुत खूब ।

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    1. आदरणीय राजेश जी हार्दिक स्वागत करती हूँ आपका अपने ब्लॉग पर ------ और आभार आपका कि आपने रचना पढ़ी और प्रेरक शब्द लिखे |

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  8. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार मई 20, 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  9. शुक्र है गाँव में इक
    बरगद तो बचा है.... बेहद प्रभावशाली रचना प्रिय सखी

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    1. प्रिय अनुराधा जी -- हार्दिक आभार सखी |

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  10. वाह वाह वाह ¡¡¡
    रेणु बहन वो दिन आंखों में आ गये जब कस्बों और गांवों मे सब दुख सुख सांझे के होते थे बुजुर्ग बस आदरणीय होते थे ना हिन्दू ना मुस्लमान होते थे सभी के चाचा बाबा ताऊ होते थे और सब को उनसे भरपूर आशीर्वाद मिलता था बदले मे उन्हे बस सम्मान मिलता था। आपने रचना के माध्यम से बहुत सुंदर संदेश दिया है।
    बहुत प्यारी मुल्यों वाली रचना

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    उत्तर
    1. जी प्रिय कुसुम बहन आपके शब्दों से मेरी रचना विशिष्ट हो गयी है |आपने सच कहा वो दिन बहुत ही सुकून भरे थे जब गाँव में इस तरह भाईचारा निभाया जाता था कि गाँव के बड़े बूढ़े और सघन वृक्षों को गाँव की सांझी विरासत का प्रतीक माना जाता था जिनकी प्रबल आकांक्षा यही रहती थी कि सब लोग एक होकर प्यार से रहें | आपके स्नेह भरे शब्दों ने रचना का मोल बढ़ा दिया ह जिसके लिए आभार नहीं बस मेरा प्यार आपके लिए | |

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  11. उत्तर
    1. प्रिय अभिलाषा बहन-- रचना यात्रा में आपके निरंतर सहयोग के लिए आभारी रहूंगी |

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  12. वाह! मानों बरगद की छाँह में इतिहास ऊंघ रहा हो! सुंदर मानवीकरण।

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    1. आदरणीय विश्वमोहन जी - आपके शब्दों ने रचना पर चिंतन को अतुलनीय विस्तार दिया है | हार्दिक आभार और नमन |

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  13. रेणु दी, गांवों के प्रेम पूर्ण जीवन का सजीव चित्रण किया हैं आपने। बहुत बढ़िया।

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  14. बेहतरीन रचना रेनू जी. गाँव का कितना सजीव चित्रण किया है आपने. मुझे अपने गाँव की याद आ गई.

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  15. उत्तर
    1. प्रिय रविन्द्र जी - आपका हार्दिक आभार |

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  16. बहुत सुन्दर और सार्थक रचना प्रिय रेणु दी
    सादर

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    1. प्रिय अनीता -- तुम्हारे स्नेह के लिए आभारी हूँ |

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  17. बुजुर्ग और वृक्ष सदैव ही छाँव देते हैं । बहुत ही सुंदर लिखा है । तुम्हारी लिखी हर रचना मन को छूती है ।।

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    1. प्रिय दीदी, आपने यहाँ आकर मेरी रचना का मान बढ़ाय, मेरे लिए गर्व की बात है। हार्दिक आभार और अभिनंदन आपका 🙏🙏🌹🌹❤❤

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  18. आपकी इतनी पुरानी कविता यूं पढ़ी रेणु जी मानो कोई नई कविता पढ़ रहा होता हूं। इंसानियत और कुदरत का घुलामिला रंग है इसमें। यह सदा सार्थक रहेगी।

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