मेरी प्रिय मित्र मंडली

गुरुवार, 7 सितंबर 2017

तुम्हारी चाहत -------- कविता -----

तुम्हारी चाहत  --- कविता

 अनमोल है तुम्हारी चाहत 

जो नहीं चाहती मुझसे ,

कि मैं सजूँ ,  सवरूँ और  रिझाऊँ  तुम्हें  ;

जो नहीं पछताती मेरे 

विवादास्पद अतीत पर  !

और मिथ्या आशा नहीं रखती 

मेरे अनिश्चित भविष्य से ;

व्यर्थ के प्रणय निवेदन नहीं है ,

और न ही मुझे बदलने का कुत्सित प्रयास !

मेरी सीमायें और असमर्थतायें सभी जानते हो तुम ,

सुख में भले विरक्त रहो -

पर दुःख में मुझे संभालते हो तुम   ;

ये चाहत नहीं चाहती

 कि मैं बदलूं और भुला दूं अपना अस्तित्व !!

सच तो ये है कि --- ----अनंत है तुम्हारा आकाश ,

मेरी कल्पना से कहीं विस्तृत -----

जिस में उड़ रहे तुम और मैं भी स्वछंद हूँ -

सर्वत्र उड़ने के लिये ! !

अनमोल है तुम्हारी चाहत !!


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