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गुरुवार, 5 अक्तूबर 2017

ओ! शरद पूर्णिमा के शशि नवल !! ----------- कविता ----





तुम्हारी  आभा  का  क्या  कहना !
ओ! शरद पूर्णिमा के शशि नवल !!
कौतूहल हो तुम  सदियों से 
श्वेत , शीतल , नूतन धवल !!! 

 रजत रश्मियाँ  झर - झर  झरती ,
अवनि  - अम्बर     में  अमृत   भरती.
कौन न भरले  झोली  इनसे ? 
तप्त प्राण को  शीतल   करती ;
थकते ना नैन निहार तुम्हें 
तुम निष्कलुष , पावन   और निर्मल |
  ओ ! पूर्णिमा के शशि नवल !

तुमने रे ! महारास को देखा  
 सुनी मुरली मधुर  मोहन की ,
कौन  रे !  महाबडभागी  तुम  सा  ? 
तुम में   सोलह   कला    भुवन   की ;
  स्वर्ण  - थाल  सा रूप तुम्हारा  -
 अंबर का करता.  भाल   उज्जवल !

ओ!शरद पूर्णिमा के शशि नवल !

  ले  आती   शरद को हाथ  थाम -
निर्बंध  बहे  मधु  बयार ,
गोरी के  तरसे   नयन  पिया  बिन -
धीरज  पाते   तुझसे अपार ; 
तुझमे छवि पाती श्याम - सखा की 
खिल खिल  जाता  रे मन का  कमल !!
ओ शरद पूर्णिमा के शशि नवल !!!!!!!!









  


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