सुनो !मन की व्यथा कथा !
ज़रा समझो जज्बात मेरे ,
कभी झाँकों सूने मन में
रुक कर कुछ पल साथ मेरे !
दीप की भांति जला है ये दिल
सदियों सी लम्बी रातों में ,
कभी थमे , कभी छलके हैं
अनगिन आँसू मेरी आँखों से ;
छोडो अलसाई रात का दामन
कभी तो जागो साथ मेरे !!
उन्हीं मन की अनजानी गलियों में
फिर अजनबी बन आ जाओ तुम ;
चिरविचलित प्राणों पर मेरे -
बन बादल छा जाओ तुम ,
कभी मनाओ जो रूठूँ मैं
चलो ले हाथों में हाथ मेरे !!
ये रेगिस्तान मायूसी के
इन जैसी कोई प्यास कहाँ ?
तकती है आँखे राह तुम्हारी
तुम बिन इनमें कोई आस कहाँ ?
एकांत स्नेह से अपने भर दो
रंग दो रीते एहसास मेरे !!
कभी झाँकों सूने मन में -
रुक कर कुछ पल साथ मेरे !!!!
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वाह.. बहुत खूबसूरत भावाभिव्यक्ति. बहुत सुन्दर एहसास. 👏👏
जवाब देंहटाएंप्रिय सुधा जी -- सस्नेह आभार आपका |
हटाएंप्रिय रेनू दी ..आपकी यह रचना मेरे ही जीवन की कहानी कह रही हैं ....एक एक शब्द दिल में उतरता हुआ
जवाब देंहटाएंबहुत प्यार भारी मनुहार हैं
प्रिय शकु -- नारी मन की वेदना एक जैसी होती है | आपके शब्द मेरी रचना की सार्थकता दर्शाते हैं | सस्नेह आभार आपका |
हटाएंवाह रेनू जी समर्पित भावों से सजी ऐसी कोमल मनुहार ।
जवाब देंहटाएंलाजवाब।
प्रिय कुसुम जी सस्नेह आभार आपका |
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 26 मार्च 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआदरणीय दिग्विजय जी ------ आपके सहयोग के लिए सादर आभार |
हटाएंबहुत खूबसूरत अशआर
जवाब देंहटाएंआदरणीय लोकेश जी -- आपके प्रेरणा भरे शब्द अनमोल है | सादर आभार |
हटाएंआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' २६ मार्च २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आपकी रचना लिंक की गई इसका अर्थ है कि आपकी रचना 'रचनाधर्मिता' के उन सभी मानदण्डों को पूर्ण करती है जिससे साहित्यसमाज और पल्लवित व पुष्पित हो रहा है। अतः आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
जवाब देंहटाएंटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
प्रिय ध्रुव -- आपके सहयोग के लिए ऋणी हूँ आपकी |
हटाएंविरह और प्रेम के गहरे सागर में डूब के लिखे शब्द मन के गहरे सागर तक असर कर रहे हैं ... एक आशा, एक आस जो मासूम है ... रेगिस्तान में जल की धार चाहे अजनबी सोत्र से आये ... पर आ जाये ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सादगी भरी सुन्दर रचना जो दिल के एहसास तक जाती है ...
आदरणीय दिगम्बर जी -- रचना पर आपके गहन चिंतन ने रचना के भावों को विस्तार दिया है |आप जैसे काव्य मर्मज्ञ की सराहना मेरा सौभाग्य है | सादर आभार और नमन |
हटाएंसुन्दर रचना जो दिल को गहरे से छूती है .
हटाएंवाह !!! बहुत खूब .सुंदर .. शानदार रचना
जवाब देंहटाएंअप्रतीम भाव
प्रिय नीतू जी ----- आपके सहयोग के लिए सस्नेह आभार आपका |
हटाएंअहसास
जवाब देंहटाएंशाम का वक्त था
घर के आंगन में
माहौल खुशनुमा था
सब बहुत खुश थे
आज कई अरसे बाद सारे भाई एक साथ
मां बाप के पास बैठे थे गुफ्तगू हो रही थी
गिले शिकवे होने लगे
आवाजें ऊंची होने लगी
पास बैठी मां घबरा गई
हाथ उठे..या अल्लाह
मेरे बेटे आपस में ना लड़ें ..
प्रिय देशवाली जी -- बहुत ही हृदयस्पर्शी भावों के साथ आपकी रचना सयुक्त परिवार का एक मार्मिक चित्र प्रस्तुत करती है | लिखते रहिये बल्कि अपने ब्लॉग पर लिखकर शेयर करिये |
हटाएंबहुत सुंदर रचना रेणु जी
जवाब देंहटाएंप्रिय दीपाली -- आभारी हूँ आपकी |
हटाएं
जवाब देंहटाएंउन्ही मन की अनजानी गलियों में -
फिर अजनबी बन आ जाओ तुम ;
इन विचलित प्राणों में मेरे -
बन बादल छा जाओ तुम |
एक स्त्री के उम्रभर की व्यथा कथा बहुत ही सरलता से आपने शब्दों में पिरो दी ।
सस्नेह ।
प्रिय पल्लवी जी -- सस्नेह आभार रचना का अंतर्निहित भाव पहचानने के लिए | स्नेह बनाये रखिये |
हटाएंबहुत ही खूबसूरत एहसास...
जवाब देंहटाएंनारी मन की विरह व्यथा का सुन्दर और सादगी से शब्द चित्रण....
वाह!!!!
आदरणीय सुधा जी --- आपके शब्द मेरे लिए अनमोल हैं | सादर आभार और नमन |
हटाएंसुनो ! मन की व्यथा कथा -
जवाब देंहटाएंसमझो मन के जज्बात मेरे ,
कभी झाँकों इस सूने मन में -
रुक कुछ पल साथ मेरे !
इतनी सुंदर रचना !!!!! पर मैं ही इसे पढने से वंचित!!!!! आपकी इस कल्पनाशीलता के पंखों पर मैं उडान भरने लग गया हूं। आपकी लेखनी को नमन।
आदरणीय पुरुषोत्तम जी -- आपके उत्साही शब्दों के लिए आभार कहना पर्याप्त नहीं | यही उत्साह मेरे लेखन की संजीवनी है | आपके शब्द हमेशा की तरह अनमोल है | सादर ------
हटाएंबहुत ख़ूबसूरत अहसास और उनकी प्रभावी अभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंआदरणीय सर -- मेरे ब्लॉग पर आपका आना मेरा सौभाग्य !!!!! आपके सराहना भरे शब्द बहुत प्रेरक और अनमोल है | सादर आभार और नमन |
हटाएं👏👏👏👏 लाजवाब। कितना सुन्दर तरिके से शब्दों का प्रयोग किया है आपने । भाव का तो कहना नही! अप्रतिम ।
जवाब देंहटाएंप्रिय प्रकाश --------- सादर आभार -आपका जो आपने रचना पढ़ा |-
हटाएंये रेगिस्तान मायूसी के -
जवाब देंहटाएंइन जैसी कोई प्यास कहाँ ?
तकती है आँखे राह तुम्हारी -
तुम बिन इनमें कोई आस कहाँ ?
सुंदर पंक्तियों से सजी रचना मन को दस्तक देती हुई..
हार्दिक आभार और अभिनंदन प्रिय अर्पिता जी ❤❤🙏🌹🌹
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