मेरी प्रिय मित्र मंडली

शुक्रवार, 9 मार्च 2018

जीवन में तुम्हारा होना ---- कविता --





जीवन में  तुम्हारा होना---- कविता --


जब सबने रुला दिया  
तब तुमने  हँसा दिया ,
ये कौन प्रीत का  जादू   
भीतर तुमने जगा दिया  ?
  
जीवन में  तुम्हारा होना 
 शायद अरमान हमारा था ;
इसी लिए अनजाने में  
 दिल ने   तुम्हें  पुकारा था ;
 सहलाया  घायल  अंतर्मन    -
मरहम सा लगा दिया !!

खुद को भूले  बैठे थे  
जीवन की तप्त दुपहरी थी , 
जो साथ  तुम्हें  लेकर आई  
वो भोर सुनहरी थी ;
तुम आये खुशियाँ संग लाये  
 हर  दर्द भुला दिया  !!

जो मन में   गूंजा  करता था
 वो इक नाम तेरा ही था ;
 एक अलग रूप में मिला है साथी  
 तू घनश्याम मेरा ही था ;
 यूँ साथ  दिया , मायूसी की 
  नींदों से जगा  दिया !!
  
उसी क्षण की परिक्रमा  करता -
ये अनुरागी मन मेरा ,
जो भर  गया दामन  में उमंगे 
और बदल गया जीवन मेरा ;
उपकार बड़ा उस पल का-
 जिसने  तुमसे मिला दिया !! 


चित्र -- गूगल से साभार ----- 
--------------------------------------------------------------------------------

धन्यवाद शब्द नगरी ------ 

रेणु जी बधाई हो!,

आपका लेख - (जीवन में तुम्हारा होना---- कविता -- ) आज के विशिष्ट लेखों में चयनित हुआ है | आप अपने लेख को आज शब्दनगरी के मुख्यपृष्ठ (www.shabd.in) पर पढ़ सकते है | 

-------------------------------------------------------

35 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. आदरणीय बड़े भ्राता-- आपका उत्साहवर्धन अनमोल है | सादर आभार और नमन |

      हटाएं
  2. बहुत सुन्दर रचना
    लाजवाब शब्द चयन
    बहुत बहुत बधाई इस रचना के लिये

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी यह कविथा नायाब रचना का मूर्त रूप है
    जब सबने रुला दिया -
    तब तुमने हंसा दिया ,
    ये कौन प्रीत का जादू भीतर -
    तुमने जगा दिया ?
    बहुत ही अच्छी रचना। विश्वास और भरोसे का वृक्ष हर जगह नहीं मिलता। मगर जब मिल जाता है राही वहीं डेरा जमाता है बसेरा बनाता है। गम कोसों दूर आनन्द का जहां पाता है। बेहतरीन रचना हेतु बधाई।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय पुरुषोत्तम जी -- मेरी रचना पर आपके भावनात्मक शब्द रचना की विषय वस्तु को अनंत विस्तार देते हैं और मेरे लेखन को सम्मान |जिसके लिए आपकी आभारी रहूंगी | सादर --

      हटाएं
  4. सुंदर भावात्मक अहसास से पगी कोमल रचना रेणु बहनमन को भा गई । सुप्रभात

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय कुसुम बहन -- सस्नेह आभार आपके स्नेह भरे शब्दों के लिए |

      हटाएं
  5. जब सबने रुला दिया -
    तब तुमने हंसा दिया ,
    ये कौन प्रीत का जादू भीतर -
    तुमने जगा दिया ?
    बहुत कुछ न कहते हुए भी बहुत कुछ कह दिया इन शब्दों में ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय संजय जी -- आपके प्रेरक शब्द अनमोल हैं | सादर आभार |

      हटाएं
  6. उसी क्षण की परिक्रमा करता -
    ये अनुरागी मन मेरा ,
    जो भर गया दामन में उमंगे -
    और बदल गया जीवन मेरा ;
    उपकार बड़ा उस पल का-
    जिसने तुमसे मिला दिया !
    खूबसूरत भाव रेणुजी ! मन की गहराइयों से लिखी गई रचना !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय मीना बहन उन्ही मन की गहराइयों से आपका सस्नेह आभार | आपके शब्द उर्जा से भर देते हैं |

      हटाएं
  7. बहुत सूंदर ,सहलाया ये घायल अंतर्मन......वाह.

    जवाब देंहटाएं
  8. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक १२ मार्च २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय श्वेता बहन आपका सहयोग अनमोल है | सस्नेह आभार |

      हटाएं
  9. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' १२ मार्च २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

    निमंत्रण

    विशेष : 'सोमवार' १२ मार्च २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने सोमवारीय साप्ताहिक अंक में आदरणीया साधना वैद और आदरणीया डा. शुभा आर. फड़के जी से आपका परिचय करवाने जा रहा है।

    अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय ध्रुव -- आपका सहयोग आभार से परे है | आपकी सफलता की कामना करती हूँ |

      हटाएं
  10. आत्मिक प्रेम का गहरा अहसास संजोये है ये रचना ... बहुत सुंदर ...
    यूँ तो प्रेम का भाव ही मन में उमंग जगा देता है ऐसे में किसी का साथ सातवें आसमान तर पहुँचा देता है ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय दिगम्बर जी-- रचना पर आपका चिंतन रचना के विषय को विस्तार देता है | सादर आभार आपका |

      हटाएं
  11. खुद को भूले बैठे थे -
    जीवन की तप्त दुपहरी थी -
    जो साथ तुम्हे लेकर आई -
    वो भोर सुनहरी थी ;
    तुम आये खुशियाँ संग लाये -
    हरेक दर्द भुला दिया !!
    कृतज्ञ भाव लिए बहुत ही खूबसूरत फेरे...
    लाजवाब परिक्रमा
    वाह!!!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय सुधा जी -- रचना के अंतर्निहित भाव को पहचानने कर उत्साहवर्धन में आपका कोई सानी नहीं है | आप के सहयोग की ऋणी रहूंगी | सादर आभार और नमन |

      हटाएं
  12. ये कौन प्रीत का  जादू   भीतर  -
    तुमने जगा दिया
    वाह. अद्भुत.
    प्रेम से सराबोर रचना.
    बहुत खूबसूरत एहसास.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय सुधा जी -- आपके स्नेह भरे शब्द अनमोल हैं |

      हटाएं
  13. उसी क्षण की परिक्रमा करता -
    ये अनुरागी मन मेरा .........अनहद आशा का आहद उद्घोष! बधाई और आभार!!!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय विश्व मोहन जी -- उत्साहवर्धन करते आपके शब्द लेखन को सार्थक करते हैं | सादर आभार और नमन |

      हटाएं
  14. प्रिय श्रीराम जी -- सस्नेह आभार आपका |

    जवाब देंहटाएं
  15. निमंत्रण

    विशेष : 'सोमवार' १९ मार्च २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने सोमवारीय साप्ताहिक अंक में आदरणीया 'पुष्पा' मेहरा और आदरणीया 'विभारानी' श्रीवास्तव जी से आपका परिचय करवाने जा रहा है।

    अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय ध्रुव आपका सहयोग अतुलनीय है | हार्दिक आभार ----

      हटाएं
  16. आदरणिये ध्रुव जी बहुत बहुत आभार आपका मेल पढ़ा आप विभा रानी जी परिचय करवाने जारहे है हमे इंतजार है उनकी रचना का मैने आज ही आपके ब्लॉग का अनुशरण किया है मै वीर रस मे सैनिको के सम्मान मे एवं राजनीती पर कटाक्ष करते चुभते तीर भी लिखता हूँ ।। आप का बहुत बहुत आभार कि आप हिंदी भाषा की सेवा मे लगे हुवे है ।। आपके इस भगीरथ प्रयास को नमन ।। आपका कवि भयंकर

    जवाब देंहटाएं
  17. प्रिय अमित - आपके शब्द अनमोल हैं | सस्नेह आभार आपका |

    जवाब देंहटाएं

Yes

विशेष रचना

आज कविता सोई रहने दो !

आज  कविता सोई रहने दो, मन के मीत  मेरे ! आज नहीं जगने को आतुर  सोये उमड़े  गीत मेरे !   ना जाने क्या बात है जो ये मन विचलित हुआ जाता है ! अना...