मेरी प्रिय मित्र मंडली

शनिवार, 16 जून 2018

स्मृति शेष पिताजी ----- कविता

स्मृति  शेष  -- पिता  जी
 



कल थे पिता  आज नहीं है ,
माँ का अब वो राज नहीं है !

दुनिया के लिए इंसान थे वो ,
पर माँ के भगवान थे  वो !
बिन कहे उसके दिल तक जाती थी,
खो गई अब वो आवाज नहीं है ! 

माँ के सोलह सिंगार थे वो ,
माँ का पूरा संसार थे वो !
वो राजा थे - माँ रानी थी ,
छिन गया अब वो ताज नहीं है ! 

वो थे हम पर इतराने वाले ,
प्यार से सर सहलाने वाले !
उठा है जब से उनका साया ,
किसी को हम पर  नाज़ नहीं है
कल थे पिता पर आज नहीं है -
माँ का अब वो राज नहीं है!!! 


शनिवार, 9 जून 2018

घर से भागी बेटी के नाम --

इज्जत की चादर ओढ़ के तुम  
 हो गयी किन अंधियारों में गुम ?

ना हो ये चादर  तार- तार  
लौट आओ बस एक बार,
 चौखट  जो लाँघ गई थी तुम
 खुला अभी है उस  का द्वार-
 आ !  पौ फटने से पहले  
 रख दो पिताकी लाज का भ्रम! 

पूछेगा जब कोई कल   
 कहूँगा क्या ?कहाँ है तू ?
 बोलेंगी ना  दीवारें घर की  
 हवा कह देगी जहाँ है तू;
 मिलाऊँगा कैसे  नजर खुद से ?
झुक जायेंगे   मेरे गर्वित नयन !!

मौन  दीवारें ,  है स्तब्ध आँगन,
बस बज  साँसों के   तार रहे , 
 चौकें आहट पे  विकल मन  
 पल- पल   तुम्हें  पुकार   रहे ;
ना जाने   रखे थामे   कैसे 
 ये आँखों के उमड़े सावन !!

  जन्म लिया  जब से तुमने                         -
  माँ ने     सपन संजोये ,
 घर द्वार से   विदा  हो तू
 माँ   ख़ुशी के  आँसू रोये  , 
 बो जाए  आँगन धान  दुआ के
ले जाए आशीषों का मधुबन!!

 तू कोमल फूल है  इस घर   का
 पली  ममता के   आँचल में ;
दुनिया की धूप बड़ी तीखी
झुलसा देगी तुम्हें पल में ;
 भरोसे पे धोखा खा न   जाना 
 ना  कर लेना पलकें नम   !!

गाऊँ   मगलगान  करूँ हल्दी उबटन
 रचा मेहंदी , पहना बिछुवे ,  कंगन . 
 ओढ़ा कर  चुनर शगुनों की  
भेजूँ  तेरे घर, संग साजन ,
 ना बोझिल  होना दुःख से  लाडो !
ना   पछताना पूरा जीवन  !!
इज्जत की चादर ओढ़ के तुम -
 हो गयी किन अंधियारों में गुम ? 

शनिवार, 2 जून 2018

रूहानी प्यार --------- कविता --

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हुए  रूहानी प्यार के
कर्ज़दार  हम ,
रखेगें इसे दिल में
सजा  संवार हम   !!

 बदल जायेंगे जब  
 सुहाने  ये  मन के मौसम , 
 तनहाइयों में साँझ की
 घुटने लगेगा दम,   
खुद को बहलायेंगें 
इसको निहार हम !!

  इस प्यार की क्षितिज पे
  रहेंगी टंकी कहानियां  ,
    लेना ढूंढ   तुम वहीँ     -
 विस्मृत ये निशानियाँ -
   आँखों से  बह उठेगे 
बन अश्रु की  धार  हम !!

 हर शाम हर  सुबह  में -
 मांगेगे हर दुआ में-
ठुकरायेगी जो दुनिया -
 आयेंगे तेरी  पनाह में 
हर  सांस संग रहेंगे 
तेरे तलबगार हम !!!

रहेगी  ये खुमारी -
मिटेगी हर दुश्वारी -
भले ना   जुड़  सके हम  
जुड़ेंगी   रूहें  हमारी
और फिर  मिलेंगे   
 जीवन  के   पार हम! 

स्वरचित -- रेणु--
चित्र -- गूगल से साभार -- 
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रेणु जी बधाई हो!,

आपका लेख - (रूहानी प्यार ----- कविता ------------- ) आज के विशिष्ट लेखों में चयनित हुआ है | आप अपने लेख को आज शब्दनगरी के मुख्यपृष्ठ (www.shabd.in) पर पढ़ सकते है |
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विशेष रचना

पुस्तक समीक्षा और भूमिका --- समय साक्षी रहना तुम

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