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शनिवार, 24 मार्च 2018

सुनो ! मन की व्यथा--------- कविता

सुनो  !मन की  व्यथा कथा !
 ज़रा समझो  जज्बात मेरे ,
कभी झाँकों    सूने मन  में  
 रुक कर  कुछ पल साथ मेरे  !

दीप की भांति जला है ये दिल  
सदियों सी  लम्बी  रातों में ,
 कभी  थमे   , कभी छलके  हैं  
 अनगिन   आँसू मेरी आँखों  से   ;
छोडो  अलसाई रात का दामन  
कभी  तो  जागो साथ मेरे  !! 

 उन्हीं  मन की  अनजानी  गलियों में   
 फिर  अजनबी बन आ जाओ तुम ;
  चिरविचलित प्राणों   पर  मेरे  -
  बन बादल   छा जाओ तुम  ,
कभी  मनाओ जो   रूठूँ मैं   
 चलो  ले हाथों में हाथ मेरे !!

ये रेगिस्तान मायूसी के  
 इन  जैसी कोई  प्यास  कहाँ ? 
तकती है  आँखे राह तुम्हारी    
तुम बिन इनमें कोई  आस कहाँ ? 
एकांत   स्नेह से अपने भर दो 
रंग दो  रीते एहसास  मेरे !!
कभी झाँकों    सूने मन  में -
 रुक कर  कुछ पल साथ मेरे  !!!!
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