सुनो !मन की व्यथा कथा !
ज़रा समझो जज्बात मेरे ,
कभी झाँकों सूने मन में
रुक कर कुछ पल साथ मेरे !
दीप की भांति जला है ये दिल
सदियों सी लम्बी रातों में ,
कभी थमे , कभी छलके हैं
अनगिन आँसू मेरी आँखों से ;
छोडो अलसाई रात का दामन
कभी तो जागो साथ मेरे !!
उन्हीं मन की अनजानी गलियों में
फिर अजनबी बन आ जाओ तुम ;
चिरविचलित प्राणों पर मेरे -
बन बादल छा जाओ तुम ,
कभी मनाओ जो रूठूँ मैं
चलो ले हाथों में हाथ मेरे !!
ये रेगिस्तान मायूसी के
इन जैसी कोई प्यास कहाँ ?
तकती है आँखे राह तुम्हारी
तुम बिन इनमें कोई आस कहाँ ?
एकांत स्नेह से अपने भर दो
रंग दो रीते एहसास मेरे !!
कभी झाँकों सूने मन में -
रुक कर कुछ पल साथ मेरे !!!!
----------------------------------------------------------------------------