इज्जत की चादर ओढ़ के तुम
हो गयी किन अंधियारों में गुम ?
ना हो ये चादर तार- तार
लौट आओ बस एक बार,
चौखट जो लाँघ गई थी तुम
खुला अभी है उस का द्वार-
आ ! पौ फटने से पहले
रख दो पिताकी लाज का भ्रम!
पूछेगा जब कोई कल
कहूँगा क्या ?कहाँ है तू ?
बोलेंगी ना दीवारें घर की
हवा कह देगी जहाँ है तू;
मिलाऊँगा कैसे नजर खुद से ?
झुक जायेंगे मेरे गर्वित नयन !!
मौन दीवारें , है स्तब्ध आँगन,
बस बज साँसों के तार रहे ,
चौकें आहट पे विकल मन
पल- पल तुम्हें पुकार रहे ;
ना जाने रखे थामे कैसे
ये आँखों के उमड़े सावन !!
जन्म लिया जब से तुमने -
माँ ने सपन संजोये ,
घर द्वार से विदा हो तू
माँ ख़ुशी के आँसू रोये ,
बो जाए आँगन धान दुआ के
ले जाए आशीषों का मधुबन!!
तू कोमल फूल है इस घर का
पली ममता के आँचल में ;
दुनिया की धूप बड़ी तीखी
झुलसा देगी तुम्हें पल में ;
भरोसे पे धोखा खा न जाना
ना कर लेना पलकें नम !!
गाऊँ मगलगान करूँ हल्दी उबटन
रचा मेहंदी , पहना बिछुवे , कंगन .
ओढ़ा कर चुनर शगुनों की
भेजूँ तेरे घर, संग साजन ,
ना बोझिल होना दुःख से लाडो !
ना पछताना पूरा जीवन !!
इज्जत की चादर ओढ़ के तुम -
हो गयी किन अंधियारों में गुम ?