मेरी प्रिय मित्र मंडली

शनिवार, 9 जून 2018

घर से भागी बेटी के नाम --

इज्जत की चादर ओढ़ के तुम  
 हो गयी किन अंधियारों में गुम ?

ना हो ये चादर  तार- तार  
लौट आओ बस एक बार,
 चौखट  जो लाँघ गई थी तुम
 खुला अभी है उस  का द्वार-
 आ !  पौ फटने से पहले  
 रख दो पिताकी लाज का भ्रम! 

पूछेगा जब कोई कल   
 कहूँगा क्या ?कहाँ है तू ?
 बोलेंगी ना  दीवारें घर की  
 हवा कह देगी जहाँ है तू;
 मिलाऊँगा कैसे  नजर खुद से ?
झुक जायेंगे   मेरे गर्वित नयन !!

मौन  दीवारें ,  है स्तब्ध आँगन,
बस बज  साँसों के   तार रहे , 
 चौकें आहट पे  विकल मन  
 पल- पल   तुम्हें  पुकार   रहे ;
ना जाने   रखे थामे   कैसे 
 ये आँखों के उमड़े सावन !!

  जन्म लिया  जब से तुमने                         -
  माँ ने     सपन संजोये ,
 घर द्वार से   विदा  हो तू
 माँ   ख़ुशी के  आँसू रोये  , 
 बो जाए  आँगन धान  दुआ के
ले जाए आशीषों का मधुबन!!

 तू कोमल फूल है  इस घर   का
 पली  ममता के   आँचल में ;
दुनिया की धूप बड़ी तीखी
झुलसा देगी तुम्हें पल में ;
 भरोसे पे धोखा खा न   जाना 
 ना  कर लेना पलकें नम   !!

गाऊँ   मगलगान  करूँ हल्दी उबटन
 रचा मेहंदी , पहना बिछुवे ,  कंगन . 
 ओढ़ा कर  चुनर शगुनों की  
भेजूँ  तेरे घर, संग साजन ,
 ना बोझिल  होना दुःख से  लाडो !
ना   पछताना पूरा जीवन  !!
इज्जत की चादर ओढ़ के तुम -
 हो गयी किन अंधियारों में गुम ? 

विशेष रचना

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