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गुरुवार, 5 जुलाई 2018

जो ये श्वेत,आवारा , बादल -- कविता

जो ये  श्वेत,आवारा , बादल -कविता
 जो ये श्वेत,आवारा , बादल  
रंग -श्याम रंग ना आता  ,
कौन सृष्टि के पीत वसन को  
रंग के हरा कर पाता ?

ना सौंपती इसे जल- संपदा  
कहाँ सुख से
 नदिया सोती ?
इसी जल को अमृत घट सा भर 
नभ से कौन छलकाता ?

किसके रंग- रंगते कृष्ण सलोने 
घनश्याम कहाने खातिर ?
इस सुधा रस बिन कैसे  
चातक अपनी प्यास बुझाता ?

पी   छक, तृप्त धरा ना होती  
सजती कैसे नव सृजन की बेला ?
 कौन करता   जग को पोषित 
अन्न धन कहाँ से आता ?

किसकी छवि पे मुग्ध मयूरा
सुध -बुध खो नर्तन करता ?
कोकिल  सु -स्वर दिग्दिगंत में
आनंद कैसे भर पाता ?

टप-टप गिरती  बूँदों बिन  
कैसे  आँगन में उत्सव सजता ?
दमक -दामिनी संग व्याकुल हो
 मेघ जो राग मल्हार ना गाता  !

कहाँ से खिलते पुष्प सजीले,
कैसे इन्द्रधनुष सजता ?
विकल अम्बर का ले  संदेशा 
कौन धरा तक आता  !!
चित्र गूगल से साभार --- 
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रेणु जी बधाई हो!,

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