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रविवार, 5 नवंबर 2017

अमरुद चुराने आ गई बच्चों की टोली --- बाल कविता |




अमरुद चुराने आ गई बच्चों की टोली ,
 रह- रह पेड़ को ताक रही  - उनकी  नजरें भोली ! 

 हरे भरे पेड़ पर लदे   -फल आधे कच्चे -आधे पक्के  ,
बड़ी ललचाई नजरों से ताके जाते हैं बच्चे ;
कई तिडकम भिड़ा रहे भीतर ही भीतर-
होगे सफल -लग रहे  बड़े   धुन के पक्के ;
देख -समझ ले ना कोई उनकी बाते –
   संकेतों में बतियाते   हमजोली  ! !

कुछ गली में खड़े- दीवार से टेक लगाये ,
एक झुका -- दूजे को  कांधे पे चढ़ाए ;
बाकि   पहरा दे रही चौकन्नी निगाहें –
ज़रा सी आहट पे भाग ले पैर सर पे उठाये ;
बस कुछ पल की बात है काम निपट जाये-
हैं कोशिश में फलों से भर जाये झोली ! !

एक नन्हा बच्चा चढ़ बैठा -मोटी टहनी के ऊपर –
फैक रहा अमरुद तोड़ - नीचे वालों के ऊपर ;
पाया मानों पल में जग भर का खजाना –
लगे समेटने फल बच्चे बडे खुश होकर ;
बड़ी कशमकश में हैं कुछ ज्यादा मिल जाये
जल्द ख़त्म हो जाए ये आंखमिचौली ! !

चुपके से बाहर झाँका तो मेरी आँखें भर आईं -
शुक्र है बच्चों में बचा है बचपन -ये बात मन भाई -
किताबों के बोझ तले दबे थे नन्हे बच्चे -
बाहर निकले कुछ  - इनकी दुनिया मुस्काई ;
चोरी के फल पाकर खिल गए सबके चेहरे -
छोटी सी ख़ुशी ने नन्हे मनों की गांठे खोली !!!!!!!!!!!!!!
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