अनमोल है तुम्हारी चाहत -जो नहीं चाहती मुझसे ,कि मैं सजूँ सवरुं और रिझाऊं तुम्हें ;जो नहीं पछताती मेरे - विवादास्पद अतीत पर !और मिथ्या आशा नहीं रखती मेरे अनिश्चित भविष्य से ;व्यर्थ के प्रणय निवेदन नहीं है -और न ही मुझे बदलने का कुत्सित प्रयास !मेरी सीमायें और असमर्थतायें सभी जानते हो तुम ,सुख में भले विरक्त रहो -पर दुःख में मुझे संभालते हो तुम ;ये चाहत नहीं चाहती कि मैं बदलूंऔर भुला दूं अपना अस्तित्व !!सच तो ये है कि -------अनंत है तुम्हारा आकाश ,मेरी कल्पना से कहीं विस्तृत -----जिस में उड़ रहे तुम और मैं भी स्वछंद हूँ -सर्वत्र उड़ने के लिये ! !अनमोल है तुम्हारी चाहत !! चित्र - गूगल से साभाए -----------------------------------------------अनमोल टिप्पणी गूगल से साभार -- तुम वाणी की वीणा के स्वर रेणु हो/या, फिर मोहन के अधरों के वेणु हो / --------------------------------------------------------