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रविवार, 24 मई 2020

मरुधरा पर - - कविता




 मरुधरा पर ये  किसने  की मनमानी ?
 कौन है जिसने  रेत सिन्धु मथने की ठानी? 

यहाँ हीरा , मानिक  ना कोई मोती

रेतीले सागर में  पड़ी वीरानी सोती ;
इस ठाँव  क्या  ढूँढने   आया होगा कोई  ?
 कलकल बहती नदिया ना  फसलें धानी !
  कौन है जिसने  रेत सिन्धु मथने की ठानी? 

किसके पदचिन्ह  रेतीले  तट पर उभरे हैं ?

कौन  पथिक  हैं जो इस पथ से गुजरे हैं ?
 वीर प्रताप से थे  शायद  रणबाँकुरे
लिख चले शौर्य गाथा वो अमर बलिदानी !
 कौन है जिसने  रेत सिन्धु मथने की ठानी? 

कोई  था  भूला भटका  या लाई  उसे उसकी तन्हाई? 
 निष्ठुर  बालू बंजर    जान पाया    कब  पीर पराई? 
भरमाया सुनहरे  सैकत  की आभा से    
मन  रहा ढूँढता होगा कोई छाँव सुहानी ? 
 कौन है जिसने  रेत सिन्धु मथने की ठानी? 

थी   मीरा   दीवानी तपती कृष्ण  लगन में ,       

या कोई  मजनूं दीवाना   जलता विरह अगन में ;
प्यास लिए मरुस्थल  सी  एक   जोगी बंजारा , 
  गाता फिरता  होगा -किस्सा   इश्क रूहानी !
  कौन है जिसने  रेत सिन्धु मथने की ठानी? 

चित्र -- पांच लिंकों से साभार 

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