मेरी प्रिय मित्र मंडली

बुधवार, 19 दिसंबर 2018

जब तुम ना पास थे -


कुछ घड़ियाँ थी या सदियाँ थी
तुम्हारे  इन्तजार  की ,
 बढ़ी   मन की तपन 
फीकी पड़ी रंगत बहार की !

बुझी-बुझी हर शै थी 
जब तुम ना पास थे  ,
आंगन , पेड़ , फूल , चिड़िया 
सब उदास थे !

  हवाएँ थी  पुरनम , 
 गुम  मन  मौसम थे;
 बरसने को आतुर
 येआँखों के सावन थे !! 

 खुद के   सवाल थे 
अपने ही   जवाब थे ,
चुपचाप  जिन्हें सुन रहे   
जुगनू,  तारे  ,मेहताब थे !
  
ना रहा बस में मेरे 
कब  दिल पे जोर था ,
उलझा रहा   भीतर  
 तेरी  यादों का शोर था !!

 भ्रम  सी थी हर आहट
 तुम जैसे  आसपास हो ।
कह रहा बोझिल मन
कहीं तुम भी  उदास हो !!


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