
कुछ घड़ियाँ थी या सदियाँ थी
तुम्हारे इन्तजार की ,
बढ़ी मन की तपन
फीकी पड़ी रंगत बहार की !
बुझी-बुझी हर शै थी
जब तुम ना पास थे ,
आंगन , पेड़ , फूल , चिड़िया
सब उदास थे !
हवाएँ थी पुरनम ,
गुम मन मौसम थे;
बरसने को आतुर
येआँखों के सावन थे !!
खुद के सवाल थे
अपने ही जवाब थे ,
चुपचाप जिन्हें सुन रहे
जुगनू, तारे ,मेहताब थे !
ना रहा बस में मेरे
कब दिल पे जोर था ,
उलझा रहा भीतर
तेरी यादों का शोर था !!
भ्रम सी थी हर आहट
तुम जैसे आसपास हो ।
कह रहा बोझिल मन
कहीं तुम भी उदास हो !!