मेरी प्रिय मित्र मंडली

मंगलवार, 22 फ़रवरी 2022

कहो शिव!

कहो शिव! क्यों लौट गए खाली

मुझ अकिंचन के द्वार से तुम ?

क्यों कर गए वंचित पल में,

करुणा के उपहार से तुम! 


दावानल-सी  धधक रही,

विचलित उर में वेदना!

निर्बाध हो कर रही भीतर

खण्डित धीरज और चेतना!

सर्वज्ञ हो कर  अनभिज्ञ   रहे,

मेरे भीतर के हाहाकार से तुम!


आए जब तुम आँगन मेरे, 

क्यों न तुम्हें पहचान सकी!

तुम्हीं थे चिर-प्रतीक्षित पाहुन

 थी मूढ़  बड़ी ,ना जान सकी!

क्यों ठगा मुझे यूं छल-बल से

भर गए क्षणिक विकार से तुम!


एक भूल की न मिली क्षमा,

कर-कर हारी हरेक जतन!

कैसे इस ग्लानि से  उबरूं ? 

बह चली अश्रु की गंग-जमन!

ये क्लांत प्राण हों जाएं शांत,

जो कर दो मुक्त उर-भार से तुम!







विशेष रचना

पुस्तक समीक्षा और भूमिका --- समय साक्षी रहना तुम

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