लिख दो ! कुछ शब्द
नाम मेरे ,
अपने होकर ना यूँ
बन बेगाने रहो तुम !
हो दूर भले पर पास मेरे .
इनके ही बहाने रहो तुम !
कोरे कागज पर उतर कर .
ये अमर हो जायेंगे ;
जब भी छन्दो में ढलेंगे ,
गीत मधुर हो जायेंगे ;
ना भूलूँ जिन्हें उम्र भर
बन प्रीत के तराने रहो तुम !
जब तुम ना पास होंगे
इनसे ही बातें करूँगी .
इन्हीं में मिलूंगी तुमसे
जी भर मुलाकातें करूँगी
शब्दों संग मेरे भीतर बस
मेरे साथी रूहाने रहो तुम !
जीवन की
ढलती साँझ में
ये दुलारेंगे मुझे ,
तुम्हारे ही प्रतिरूप में
स्नेहवश निहारेंगे मुझे ;
रीती पलकों पर मेरी
बन सपने सुहाने रहो तुम !
कौन जाने कब कहाँ
हो आखिरी पल इस मिलन का
शब्दों की अनुगूँज ही
होगी अवलंबन विकल मन का
पुकार सुनो
विचलित मन की
ना दर्द से अंजाने रहो तुम !!
स्वरचित -- रेणु
धन्यवाद शब्दनगरी
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