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शनिवार, 24 नवंबर 2018

रूमानियत

 



इस   क़दर अपना बनाया आपने  ,
कर दिया जग से पराया आपने  !

था दर्द की इन्तहा में  डूबा  ये दिल ,
चाहत का  मरहम लगाया आपने !

 मेरे  भीतर ही था सोया कहीं ,
  मेरा वो बचपन लौटाया  आपने! 

बदल गए मंज़र कायनात के,
वो हसीं जादू जगाया आपने  !

हुआ एक पल भी दूभर बिन आपके ,
 खुद का यूँ आदी बनाया आपने !

 इस  जमीं से आगे कब  था  मेरा जहाँ '
 आसमां पे ला बिठाया आपने !!

 रूमानियत का  है करिश्मा आपकी, 
मुझसे ही मुझको  मिलाया आपने !



विशेष रचना

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