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शनिवार, 17 नवंबर 2018

आये अतिथि आँगन मेरे-- कविता -

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   आये  अतिथि  आँगन मेरे ,
 महक  उठे   घर - उपवन मेरे !!

छलके  खुशियों के पैमाने 
 गूँजें मंगल - गीत सुहाने , 
आज ना पड़ते  पाँव धरा पे  
भूल गये   सब दर्द पुराने ;
 खिला है कोना -कोना घर का
पतझड़ बन  गये फागुन  मेरे !!

जिस  पल  को थे नैना तरसे ,
देख उसे ये  तन - मन   हरषे ;
खूब निहारूं और  इतराऊँ -
आँगन आज मिलन -रंग  बरसे ;
अपनों  ने जब गले लगाया 
नैना बन गये सावन मेरे !!

 जगमग दीप द्वार  सजे  हैं ,
 झिलमिल  बन्दनवार  सजे  हैं ;
 पथ बिखरी   गुलाब पांखुरी 
 सुवासित गेंदाहार सजे हैं   ;
देव  अतिथि    तुम हो  मेरे !
 स्वीकार करो अभिनंदन  मेरे  !! 
  
 आये अतिथि आंगन मेरे ,
 महक  उठे   घर - उपवन मेरे !!!!!!!

चित्र -- गूगल से साभार -- 

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