आये अतिथि आँगन मेरे ,
महक उठे घर - उपवन मेरे !!
छलके खुशियों के पैमाने
गूँजें मंगल - गीत सुहाने ,
आज ना पड़ते पाँव धरा पे
भूल गये सब दर्द पुराने ;
खिला है कोना -कोना घर का
पतझड़ बन गये फागुन मेरे !!
जिस पल को थे नैना तरसे ,
देख उसे ये तन - मन हरषे ;
खूब निहारूं और इतराऊँ -
आँगन आज मिलन -रंग बरसे ;
अपनों ने जब गले लगाया
नैना बन गये सावन मेरे !!
जगमग दीप द्वार सजे हैं ,
झिलमिल बन्दनवार सजे हैं ;
पथ बिखरी गुलाब पांखुरी
सुवासित गेंदाहार सजे हैं ;
देव अतिथि तुम हो मेरे !
स्वीकार करो अभिनंदन मेरे !!
आये अतिथि आंगन मेरे ,
महक उठे घर - उपवन मेरे !!!!!!!