मेरी प्रिय मित्र मंडली

शुक्रवार, 16 जुलाई 2021

तुम्हारी चाहत में


 
 


🙏🙏🌷आभार स्नेही पाठक वृंद🙏🙏🌷😊 ब्लॉग का चार वर्ष पूरे कर,  पाँचवे वर्ष में प्रवेश और 110वीं रचना।😊


 


तुम्हारी चाहत में नज़रबन्द हूँ,

अनगिनत इनायतों की क़र्ज़मंद  हूँ | 


मैं कहाँ  !तुम कहाँ !

मैं जमीं, तुम आसमां !

मेरा तुम्हारा मेल, है बेमेल इस कदर

रेशमी लिबास पर टाट का  पैबंद हूँ !


ना सुनाई देगी सदा,तुम्हें  ये सदा मेरी,

हो  जायेंगी  एक दिन, तुमसे राहें  जुदा मेरी ,

महकेगा कभी यादों में ,गुलाब की तरह

तुम्हारी जिंदगी का वो क्षणिक आनंद हूँ ! 

 

उम्र भर रहा  तमाशा खूब मेरा,

था  कहाँ कोई तुम बिन  वज़ूद मेरा,

कब  कोई जानता था मुझे ,मेरे नाम से

तुम्हारी हस्ती से जुडी ,  इसलिए बुलंद हूँ!


देखा  किसी ने  ना नज़र भर कभी , 

ना आ सकी खुशियों   की ,उजली सहर कभी , 

गुनगुना सका ना जिसे कोई प्यार से 

 बेसुरी -सी  रागिनी, एक अधूरा छंद  हूँ !

  तुम्हारी चाहत में नज़रबन्द हूँ,///

 


 

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