दीपमाल के उत्सव में
अनायास तुम याद आये ,
जा तुममें ही उलझा चितवन
हर दीप में तुम्हीं नजर आये ! !
जीवन अभिनय से कोसों दूर
तुम स्नेही सखा मेरे मन के ,
ओझल नजरों से दुनिया की
पावन- सिन्धु अपनेपन के .
पल सुखद तुम्हारी यादों के
मेरा विचलित मन सहलाएं !
रहा तुममें ही उलझा चितवन
हर दीप में तुम्हीं नजर आये !!
अवनि -अम्बर को जोड़ रहीं -
उजालों की अनगिन लड़ियाँ
पर मन को लगी बींधने क्यों
कण -कण में बिखरती फुलझड़ियाँ .
सघन नैन कुहासों में बरबस ,
बन चन्द्र-नवल तुम मुस्काए !
जा तुममें ही उलझा चितवन
हर दीप में तुम्हीं नजर आये
मौन स्वर ये प्रार्थना के
तुम्हें समर्पित अविराम मेरे .
उपहार तुम्हारा अनमोल वो पल
जो लिख दिए तुमने नाम मेरे ;
प्रेम -प्रदीप्त दो नयन तुम्हारे
जब भी सुधियों में छाये !
जा तुममें ही उलझा चितवन
हर दीप में तुम्हीं नजर आये !!
चित्र गूगल से साभार
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