मेरी प्रिय मित्र मंडली

गुरुवार, 3 अगस्त 2017

शुक्र है गाँव में ------------- कविता --










 शुक्र  है  गाँव में   
इक  बरगद  तो  बचा  है ,
जिसके  नीचे  बैठते    
  रहीम  चचा  हैं !!  
हर आने -जाने वाले को सदायें  देते  हैं   
चाचा  सबकी  बलाएँ  लेते हैं  ,
 धन कुछ  पास  नहीं  उनके   
बस   खूब  दुआएं   देते  हैं   ;  
नफरत   से  कोसों  दूर  है   
चाचा  का  दिल  सच्चा   है   !!  
सिख  - हिन्दू  या  हो  मुसलमान  
चाचा  के  लिए  सब  एक  समान   , 
माला  में मोती  - से   गुंथे  रहें  सब  
यही  चाचा   का  है  अरमान  ;  
समझाते  सबको - एक है वो  मालिक -  
जिसने  संसार   रचा है   !! 
   
बरगद   से  चाचा   हैं  -  
 चाचा   सा   बरगद    है  , 
  दोनों   की    छांव  --   
गाँव  की सांझी विरासत  है ;  
दोनों  ने  गाँव  के  उपवन   को - 
अपने  स्नेह  से सींचा है  !!   
 
शुक्र  है  गाँव में  इक  
 बरगद  तो  बचा  है 
जिसके  नीचे  बैठते   -
  रहीम  चचा  हैं !!  !!!!!!!!!  

विशेष रचना

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