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शनिवार, 6 अप्रैल 2019

कौन दिखे ये अल्हड किशोरी सी -- कविता


 चंचल  नैना .    फूल सी कोमल  ,
 कौन दिखे  ये अल्हड किशोरी  सी  ? 
रूप - माधुरी  का  महकता  उपवन -
लगे  निश्छल  गाँव की   छोरी   सी  !
 

मिटाती मलिनता  अंतस की 
मन  प्रान्तर  में आ बस जाए ,   
रूप   धरे  अलग -अलग  से 
 मुग्ध,  अचम्भित  कर जाए ,
 किसी    पिया की है प्रतीक्षित   
 लिए    मन   की  चादर   कोरी सी !  

तेरी   चितवन  में  उलझा  मनुवा -
तनिक  चैन  ना      पाए,
 यही  ज्योत्स्ना  चुरा  के  चंदा  
 प्रणय  का  रास  रचाए ;
 रंग ,गंध  , सुर   में  वास  तेरा  
 तू सृष्टि की  रंगीली  होरी  सी ! 

अनुराग स्वामिनी  मनु  की 
तुम    नटखट  शतरूपा सी,
शारदा तुम्हीं लक्ष्मी  , सीता,
शिव की शक्तिस्वरूपा  सी ,
अपने श्याम सखा में  उलझी  
 तुम्हीं राधिका गोरी सी !!

सृष्टा की अनुपम  रचना 
तुझ बिन सूना जग का आँगन ,
सदा धरे  धरा सा  संयम     
 है  विकल जिया का  अवलम्बन ,
 शुचिता  .  तुम्हीं   स्नेह ,करुणा,
 तुम माँ  की मीठी लोरी सी !! 

चित्र -  गूगल  से साभार


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