मेरी प्रिय मित्र मंडली

सोमवार, 22 अगस्त 2022

जीवन बोध

 


 पुरुष तुम  प्रकृति मैं ,
रहे एक दूजे में लीन सदा!
मन सिंहासन पर मेरे ,
तुम ही रहे आसीन सदा!

जन्मे साथ ना जाना था संग-संग 
गंतव्य से पर अनभिज्ञ रहे!
कब बात सुनी ज्ञानी मन की,
खुद को ही मान सर्वज्ञ रहे!
ना जान सके,जीवन नश्वर
जग-माया में रहे तल्लीन सदा!


मोह,विछोह ना जान सकी,
रही मुग्ध निहार स्व- दर्पणमें!
भूली  सब रिश्ते नाते ,
जब डूबी सर्वस्व समर्पण में !
तुम से दूर रही तनिक भी 
तड़पी ज्यों जल बिन मीन सदा!

मगन  झूमी  कस  भुजबंध में,
जाने अभिसार के रंग सभी !
शाश्वत प्रेम में हो तन्मय,  
जी ली, जी भर उमंग सभी!
 परवाह की ना  बेरंग दुनिया की,
सजाये स्वप्न नवीन सदा !
 
बड़ा कठिन विछोह सह जाना 
और जाना तुमसे दूर प्रियतम!
दुख दारुण विदा की बेला का,
है  सृष्टि का अटल नियम !
माटी की देह बनकर  माटी, 
माटी में हुई  विलीन सदा !!

 

विशेष रचना

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