
तुम्हारे दूर जाने से साथी
बरबस ये एहसास हुआ ,
दिन का हर पहर था खोया-सा
मन का जैसे वनवास हुआ !
अनुबंध नहीं कोई तुमसे ,
जीवन - भर साथ निभाने का !
.फिर भी भीतर भय व्याप्त है,
तुम्हें पाकर खो जाने का !
समझ ना पाया दीवाना मन
अपरिचित कोई क्यों ख़ास हुआ ?
तुमने जो दी सौगात हमें ,
ना कोई आज तलक दे पाया साथी!
सबने भरे आँख में आँसूं ,
पर तुमने खूब हँसाया साथी !
भर दिया खुशियों से आँचल
सिकुड़ा मन अनंत आकाश हुआ !!
हम दर्द की राह के राही थे,
था खुशियों से कहाँ नाता अपना ?
तुम बन के मसीहा ना मिलते,
कब सोया नसीब जग पाता अपना !
खिली मन की मुरझाई कलियाँ
हर पल जैसे मधुमास हुआ !!
आज तुम्हारे दूर जाने से साथी
बरबस ये एहसास हुआ
दिन का हर पहर था खोया-सा
मन का जैसे वनवास हुआ !!
चित्र -------- गूगल से साभार --
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गूगल प्लस से साभार --रचना पर अनमोल टिप्पणी --
+1
आदरणीया रेणु जी,
आपकी रचना पढ़ा।इसके एक एक शब्द मन को छू गया।कितनी अच्छी पंक्ति"अनुबंध नही कोई तुमसे जीवन भर साथ निभाने का,फिर भी भीतर भय व्याप्त है तुमको पाकर खो जाने का"।बहुत बहुत धन्यवाद आपका इतनी अच्छी रचना के लिए।

आपकी रचना पढ़ा।इसके एक एक शब्द मन को छू गया।कितनी अच्छी पंक्ति"अनुबंध नही कोई तुमसे जीवन भर साथ निभाने का,फिर भी भीतर भय व्याप्त है तुमको पाकर खो जाने का"।बहुत बहुत धन्यवाद आपका इतनी अच्छी रचना के लिए।
+sonu जी बहुत बहुत आभार कि आपने रचना की आत्मा सरीखी पंक्तियाँ चुनी | आपको पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ | एक बार फिर से आभार और नमन इस उत्साहवर्धन के लिए |
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