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शनिवार, 31 मार्च 2018

जिस पहर से------कविता ---


जिस पहर से पढने 
 शहर गये हो  , 
 तन्हाईयों  से ये 
 घर आँगन भर गये  हैं  |

उदासियाँ   हर गयी है
 घर भर का  ताना - बाना
हर आहट पे तुम हो
अब ये भ्रम पुराना,
 जाने कहाँ वो किताबें तुम्हारी  
 बन  प्रश्न तुम्हारे-मेरे उत्तर गये  हैं ! 

 झाँकती गली में ,देखूँ
लौटे बच्चों की टोली,
याद आ जाती तब 
तुम्हारी सूरत सलोनी भोली,
तुम्हारा लौट आना  ,  
अतीत में   वो पहर गये हैं

 सजा लिया आँखों में
 नया सुहाना सपना,
चुन लिया है तुमने
 आकाश नया अपना,
 उड़ान है नई सी
 उगे  अब  पर  नये  हैं !

तन्हाई में रंग भरता 
तुम्हारा अतिथि बन आना ,
सजाता है पल को 
इस घर का  वीराना ,
खिल जाती है बहना 
 नैन ख़ुशी से  भर गये हैं 

चिड़िया  सी नहीं मैं  
 तुम्हें गगन  में उड़ा दूँ , 
 करूँ ना नम नयना  
 ख़ुशी से मुस्कुरा दूँ , 
 बहुत थामा दिल को
 बन नैन निर्झर    गये है

चित्र ---------गूगल से साभार
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