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बुधवार, 30 अगस्त 2017

लम्पट बाबा ----- कविता


 कहाँ से आये ये लम्पट बाबा ?
धर सर कथित ' ज्ञान ' का झाबा !!

गुरु ज्ञान की डुगडुगी बजायी -
विवेक हरण कर जनता लुभाई ,
श्रद्धा , अन्धविश्वास में सारे डूबे -
हुई गुम आडम्बर में सच्चाई ;
बन बैठे भगवान समय के
खुद बन गये काशी   काबा !!

धन बटोरें दोनों हाथों से -
कलयुग के ये कुशल लुटेरे ,
खुद तृष्णा के पंक में डूबे
 पर दे देते उपदेश बहुतेरे ;
खूब चलायें दूकान धर्म की
सुरा -  सुंदरी में  मन लागा!!

खुद को बताये आत्मज्ञानी -
तत्वदर्शी और गुरु महाज्ञानी ,
 मन के काले और कपटी -
लोभी क्रोधी , कुटिल और कामी ;
'गुरु ' शब्द की घटाई महिमा -
बने संत समाज पे   धब्बा !!

बुद्ध , राम, कृष्ण की पावन धरा पर
नानक , कबीर ,रहीम के देश में ,
बन हमदर्द , मसीहा लोगों के -
 बैठे बगुले   हंस   वेश में
छद्म हरी -नाम बांसुरी तान चढ़ाई
करी मलिन हरि- भूमि की आभा !!

कहाँ से आये ये लम्पट बाबा ?
धर सर कथित 'ज्ञान ' का झाबा !!  

विशेष रचना

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