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सोमवार, 22 जुलाई 2019

सुनो चाँद !-- कविता


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अब  नहीं हो! दुनिया के लिए, 
 तुम तनिक  भी अंजाने, चाँद। 
 सब जान गए राज तुम्हारा 
 तुम इतने  भी नहीं    सुहाने, चाँद। 

बहुत भरमाया सदियों तुमने ,
गढ़ी झूठी कहानी थी । 
 थी वह तस्वीर एक धुंधली,
नहीं  सूत कातती नानी थी। 
युग_युग से बच्चों के मामा 
 क्या कभी आये लाड़ लगाने?चाँद !
  
 खोज-खबर लेने तुम्हारी , 
विक्रम संग प्रज्ञान चला है।
 ले  खूब  दुआओं के तोहफे,
  तुम्हें  मिलने  हिन्दुस्तान चला है   
  ना होना तनिक  भी विचलित,
 नहीं आया  कोई भरमाने , चाँद !   

 उत्तरी ध्रुव के भेद खुले,

अब दक्षिण की बारी है
 करो !हम से भी  भाईचारा,
 नहीं    कोई दुश्वारी  है  
 टंके रहोगे कब तक तन्हा ?
 अन्तरिक्ष में  वीराने , चाँद!

स्वरचित -- रेणु

चित्र - Google से साभार ----   

भारतवर्ष के गौरव 'इसरो' को चंद्रयान-2 के सफल प्रक्षेपण के लिए हजारों सलाम!
सभी प्रतिभाशाली वैज्ञानिक  बधाई  के पात्र हैं | 

शुक्रिया शब्दनगरी -----

रेणु जी बधाई हो!,

आपका लेख - (सुनो चाँद ! ) आज की सर्वश्रेष्ठ रचना के रूप में चयनित हुआ है | आप अपने लेख को आज शब्दनगरी के मुख्यपृष्ठ (www.shabd.in) पर पढ़ सकते है | 
धन्यवाद, शब्दनगरी संगठन     

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