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शनिवार, 18 अप्रैल 2020

रेगिस्तान में आ यायावर --

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रेगिस्तान में आ यायावर
क्यों हुए तुम्हारे पलक गीले ?
रेतीले पथ पर कहाँ खोजता--
खुशियों के बसंत सजीले !

ये असीम रेतीला सागर
तुझे क्या धीरज दे पायेगा ?
खुद है जो बेहाल प्यास से
कैसे शीतलता दे पायेगा ?
तुझको आगे बढ़ने ना देंगे
रेत के ऊँचे पर्वत , टीले !

बारिश की बूंदें या आंसू -
सब इसमें ज़ज़्ब हो जायेंगे .
मरुधरा पर हरियाली के
कहाँ स्वप्न पनपने पायेंगे ;
बींध देंगे कोमल पांव तेरे
ये राह के बबूल कंटीले !
कहाँ खोजता रेतीली राहों में --
खुशियों के रंग सजीले !

स्वरचित
चित्र गूगल से साभार --

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