इक मधुर एहसास है तुम संग
ये अल्हड लडकपन जीना ,
कभी सुलझाना ना चाहूँ
वो मासूम सी उलझन जीना !
बीत ना मन का मौसम जाए
चाहूँ समय यहीं थम जाए ;
हों अटल ये पल -प्रणय के साथी
भय है, टूट ना ये भ्रम जाए ,
संबल बन गया जीवन का
तुम संग ये नाता पावन जीना !
बाँधूं अमर प्रीत- बंध मन के
तुम संग नित नये ख्वाब सजाऊँ,
रोज मनाऊँ तुम रूठो तो
पर तुमसे रूठना - कभी ना चाहूं
फिर भी रहती चाहत मन की
इक झूठमूठ की अनबन जीना !!
=============================
धन्यवाद शब्द नगरी -
================================
=============================
धन्यवाद शब्द नगरी -
![]() | |
रेणु जी बधाई हो!,
आपका लेख - (उलझन -- लघु कविता) आज के विशिष्ट लेखों में चयनित हुआ है | आप अपने लेख को आज शब्दनगरी के मुख्यपृष्ठ (www.shabd.in) पर पढ़ सकते है |
धन्यवाद, शब्दनगरी संगठन
|
================================