इक मधुर एहसास है तुम संग -
ये अल्हड लडकपन जीना ,
कभी सुलझाना ना चाहूं -
वो मासूम सी उलझन जीना !
बीत ना मन का मौसम जाए -
चाहूं समय यहीं थम जाए ;
हों अटल ये पल -प्रणय के साथी -
भय है, टूट ना ये भ्रम जाए
संबल बन गया जीवन का -
तुम संग ये नाता पावन जीना !
बांधूं अमर प्रीत- बंध मन के
तुम संग नित नये ख्वाब सजाऊँ
रोज मनाऊँ तुम रूठो तो
पर तुमसे रूठना - कभी ना चाहूं
फिर भी रहती -चाहत मन की
इक झूठमूठ की अनबन जीना !!!!!!!!
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धन्यवाद शब्द नगरी -
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धन्यवाद शब्द नगरी -
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रेणु जी बधाई हो!,
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