
तेरे मेरे अनुपम प्रणय का
चाँद साक्षी आज की रात ;
मेरे मन में तेरे विलय का
चाँद साक्षी आज की रात !
झांके गगन की खिड़की से
घिरा तारों के झुरमुट से,
मुस्काए नटखट आनन्द भरा
छलकाए रस अम्बर घट से ;
सजा है आँगन नील निलय का
चाँद साक्षी आज की रात !
ये रात बासंती पूनम की
अभिलाषा प्रगाढ़ हुई मन की ,
मचले मन को चैन कहाँ अब
तोड़ रहा सीमा संयम की ,
बड़ा बोझिल ये दौर समय का
चाँद साक्षी आज की रात !
ये पल फिर लौट ना आयेंगे
बीत जायेगी रात सुहानी ये
कहाँ कोई इसका सानी है ?
बड़ा प्यारा इश्क रूहानी ये ;
न कोई डर विजय- पराजय का
चाँद साक्षी आज की रात !
मेरे संग चंदा से बतियाओ तो
आ ! तारों से आँख मिलाओ तो ,
तोड़ो साथी !मौन अधर का
मेरे मन की व्यथा सुन जाओ तो :
खोलो बंद द्वार ह्रदय का
चाँद साक्षी आज की रात !!
चित्र--गूगल से साभार
चित्र--गूगल से साभार
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हार्दिक आभार शब्दनगरी ----------- | ||
रेणु जी बधाई हो! | ||
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