औरंगबाद के दिवंगत श्रमवीरों के नाम --
ऐसे सोये- सोते ही रहे
भला! ऐसी भी क्या आँख लगी ?
पहचान सके ना मौत की आहट,
अनमोल जिन्दगी गयी ठगी |
फूलों का बिस्तर तो ना था,
क्यों लेट गये मौत की पटरी ?
लेकर चले थे शहर से जो ,
बिखर गयी सपनों की गठरी |
ना ढली स्याह रात पीड़ा की,
जीवन की ना नई भोर उगी |
क्या मोल मिला तुम्हें श्रम का ?
हाथ रहे सदा ही खाली,
देह गयी मिटती पल-पल
मिटी ना दुर्भाग्य की छाया काली |
रहा सदा मृगतृष्णा बन जीवन,
सोई हुई ना आस जगी |
परदेशी थे , परदेशी ही रहे,
अपना पाया ना शहर तुम्हें |
गले लगाने कोई मसीहा,
ना आया किसी भी पहर तुम्हें |
भूले निष्ठा अगाध तुम्हारी,
उठेगी ना ये नज़र झुकी |
रौंदा रफ़्तार ने कसर ना छोड़ी,
लील गए रस्ते जिंदगानी |
सनीं लाल लहू से सड़कें,
पग -पग दारुण हुई कहानी|
मौत लिपट दामन से चल दी,
अनगिन टुकड़ों में देह बंटी |
शर्मिन्दा थी पहले ही मानवता ,
तुम्हारे पाँव के छालों से |
कहाँ बच पाएगा इतिहास,
कटी देहों के इन सवालों से |
क्यों मुख मोड़ चली जिंदगी,
टूटी साँसों इतिहास की चाल सधी |
क्षमा करना ,हे श्रमवीर !
दे सके ना तुम्हें संबल कोई |
पहचान सके ना मौत की आहट,
अनमोल जिन्दगी गयी ठगी |
फूलों का बिस्तर तो ना था,
क्यों लेट गये मौत की पटरी ?
लेकर चले थे शहर से जो ,
बिखर गयी सपनों की गठरी |
ना ढली स्याह रात पीड़ा की,
जीवन की ना नई भोर उगी |
क्या मोल मिला तुम्हें श्रम का ?
हाथ रहे सदा ही खाली,
देह गयी मिटती पल-पल
मिटी ना दुर्भाग्य की छाया काली |
रहा सदा मृगतृष्णा बन जीवन,
सोई हुई ना आस जगी |
परदेशी थे , परदेशी ही रहे,
अपना पाया ना शहर तुम्हें |
गले लगाने कोई मसीहा,
ना आया किसी भी पहर तुम्हें |
भूले निष्ठा अगाध तुम्हारी,
उठेगी ना ये नज़र झुकी |
रौंदा रफ़्तार ने कसर ना छोड़ी,
लील गए रस्ते जिंदगानी |
सनीं लाल लहू से सड़कें,
पग -पग दारुण हुई कहानी|
मौत लिपट दामन से चल दी,
अनगिन टुकड़ों में देह बंटी |
शर्मिन्दा थी पहले ही मानवता ,
तुम्हारे पाँव के छालों से |
कहाँ बच पाएगा इतिहास,
कटी देहों के इन सवालों से |
क्यों मुख मोड़ चली जिंदगी,
टूटी साँसों इतिहास की चाल सधी |
क्षमा करना ,हे श्रमवीर !
दे सके ना तुम्हें संबल कोई |
जोखिम उठा जिस ओर चले,
मिल सकी ना मंजिल कोई |
ना चूम सके घर -गाँव की चौखट
छू पाए ना माटी स्नेह पगी |
मिल सकी ना मंजिल कोई |
ना चूम सके घर -गाँव की चौखट
छू पाए ना माटी स्नेह पगी |