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बुधवार, 21 सितंबर 2022

एक दीप तुम्हारे नाम का ------- नवगीत

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अनगिन   दीपों संग आज जलाऊँ  
एक दीप  तुम्हारे  नाम का  साथी ,
तुम्हारी प्रीत से हुई  है जगमग 
क्या कहना इस शाम  का साथी !!

 जब से   तुम्हें   साथी पाया है  
 आह्लादित मन   बौराया है ,
तुमसे   कहाँ  अब अलग रही मैं ?
खुद को  खो  तुमको पाया है
भीतर तुम हो  ,बाहर  तुम हो -
तू  गोविन्द है  मन धाम का साथी !!

ये  अनुराग  तुम्हारा   साथी 

जाने कौन गगन ले जाये ? 
पुलकित हो   बावरा  मन मेरा  
आनंद शिखर  छू जाये ,
तुम बिन अधूरा  परिचय मेरा  
तू प्रतीक  मेरे स्वाभिमान का साथी !!

मनबैरागी  बन   तजूं  रंग सारे 

मन रंगूँ तेरी प्रीत के रंग में ,
साजन  रहे अक्षुण साथ  तुम्हारा  
जीवनपथ पे चलूँ   संग-संग में 
बिन   तेरे  ये जीवंन मेरा  
है मेरे  किस काम  का साथी ? 

अनगिन   दीपों संग आज जलाऊँ 

एक दीप   तुम्हारे नाम का  साथी ,
तुम्हारी प्रीत से हुई  है जगमग 
क्या कहना इस शाम  का साथी !! 

स्वरचित -- रेणु
चित्र -- साभार गूगल -- 
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Gप्लस से साभार टिप्पणी --


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क्या कहना इस शाम का साथी, बिन तेरे ये जीवंन मेरा -अब है मेरे किस काम का साथी ? वाह वाह आदरणीया, मन मुग्ध करती रचना, स्वागतम
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