
आँगन में खेल रहे बच्चे ,
भोले- भाले मन के सच्चे !
एक दूजे के कानों में -
गुपचुप से बतियाते हैं ,
तनिक जो हो अनबन आपस में
खुद मनके गले मिल जाते है ;
भले- बुरे का फर्क ना जाने
बस हैं थोड़े अक्ल के कच्चे !
आँगन में खेल रहे बच्चे !!
निश्छल राहों के ये राही
भोली मुस्कान से जिया चुरालें ,
नजर- भर देख ले जो इनको
बस हँस के गले लगा ले ;
अभिनय नहीं इनकी फितरत
जो मन में वो ही मुखड़े पे दिखे !
आंगन में खेल रहे बच्चे !!
इन नन्हे फूलों से आज
ये आँगन का उपवन महक रहा है ,
सूना और वीरान था पहले
अब कोना - कोना चहक रहा है ,
कौतूहल से भरे ये चुन- मुन
मन के कोमल- शक्ल के अच्छे !
आँगन में खेल रहे बच्चे !!
भोले भाले मन के सच्चे !!
!