
तुम्हारी आँखों से छलक रही है
किसी की चाहत अनायास ,
जो भरी हैं पूनम जैसे उजास से ;
और हर पल चमकती हैं
अँधेरे में जलते दो दीपों की मानिंद
जो बह रही है
तुम्हारी बेलौस हँसी , के जरिये
किसी निर्मल और निर्बाध निर्झर सी ! !
किसी के सर्वस्व समर्पण ने ,
महका दिया है
तुम्हारे अंग - प्रत्यंग को ,
तभी तो तुम्हारी देह
नज़र आती है हरदम
किसी खिले फूल सी ---- ! !
ये चाहत सम्भाल रही है तुम्हें ,
जीवन के हर मोड़ पर
अपनी सीमाओं में बंधी तुम ,
भटकने -बहकने से दूर
बही जा रही हो
सदानीरा नदिया सी
मचलती और हुलसती--
गंतव्य की और ----- ! !
ये चाहत फ़ैल रही है -
यत्र - तत्र - सर्वत्र ---
सुवासित चंचल पवन की तरह ----
बन्धनों से मुक्त हो ----!!
सच तो ये है
कि तुम्हारे भीतर समा चुका है
किसी और का अस्तित्व -- ;
और दो आत्माएं
हो चुकी हैं एकाकार !!
स्वरचित -- रेणु --
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G प्लस से साभार----- अनमोल टिप्पणी --
स्वरचित -- रेणु --
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G प्लस से साभार----- अनमोल टिप्पणी --
कल्पना का सागर लहरा दिया आप ने आदरणीया, बहुत सुंदर वाह वाह तुम्हारी आँखों से !!!!!!!
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