🙏🙏🌷आभार स्नेही पाठक वृंद🙏🙏🌷😊 ब्लॉग का चार वर्ष पूरे कर, पाँचवे वर्ष में प्रवेश और 110वीं रचना।😊
तुम्हारी चाहत में नज़रबन्द हूँ,
अनगिनत इनायतों की क़र्ज़मंद हूँ |
मैं कहाँ !तुम कहाँ !
मैं जमीं, तुम आसमां !
मेरा तुम्हारा मेल, है बेमेल इस कदर
रेशमी लिबास पर टाट का पैबंद हूँ !
ना सुनाई देगी सदा,तुम्हें ये सदा मेरी,
हो जायेंगी एक दिन, तुमसे राहें जुदा मेरी ,
महकेगा कभी यादों में ,गुलाब की तरह
तुम्हारी जिंदगी का वो क्षणिक आनंद हूँ !
उम्र भर रहा तमाशा खूब मेरा,
था कहाँ कोई तुम बिन वज़ूद मेरा,
कब कोई जानता था मुझे ,मेरे नाम से
तुम्हारी हस्ती से जुडी , इसलिए बुलंद हूँ!
देखा किसी ने ना नज़र भर कभी ,
ना आ सकी खुशियों की ,उजली सहर कभी ,
गुनगुना सका ना जिसे कोई प्यार से
बेसुरी -सी रागिनी, एक अधूरा छंद हूँ !
तुम्हारी चाहत में नज़रबन्द हूँ,///