व्हाट्सअप 'में मुस्काती माँ .
नयनों से लाड़ जताती माँ ,
खुरदरे हाथ उठा मानो
प्यार से सर सहलाती माँ!
कब आओगी ?कब आओगी ?
क्यों नित पूछा करती हो ?
दुनियादारी के झंझट अनगिन
इतना ही नहीं समझती हो !
बिन मेरे गृहस्थी की गाड़ी
एक दिन भी चल ना पाती माँ !
ले बैठी जिद बच्चों -सी
सब कुछ इतना आसान है क्या?
क्या-क्या है मेरी मजबूरी
माँ मेरी अनजान है क्या!
नदिया सा नारी का जीवन
प्रवाह संग बहती जाती माँ!
देख पाऊँ तुम्हें दूर से
यही बात कहाँ कम है ?
स्नेहामृत के प्राण ऋणी हैं
देख तुम्हें भीगा मन है ,
धीर बंधाते तभी तुझे ,
आँखें भर- भर आती माँ!
मेरी मुन्नी , मेरी लाड़ो,
बिटिया मेरी प्यारी तू ,
भले है अब बच्चों की माँ
पर मेरी राजदुलारी तू ,
रह-रह भूले नाम पुकारे
बचपन मेरा सहलाती माँ |
दूभर हुई साँझ जीवन की
जर्जर- सी देह काँप रही ,
जाने कैसी संभल रही है
साँसों की लय हाँफ रही ,
वक्त की आँधी से लड़ती
बुझती लौ सी लहराती माँ !!