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सोमवार, 2 अगस्त 2021

व्हाट्सअप में मुस्काती माँ

 

 

व्हाट्सअप 'में   मुस्काती  माँ .
नयनों से लाड़ जताती माँ ,
खुरदरे   हाथ उठा  मानो
प्यार से सर सहलाती माँ!

कब आओगी ?कब आओगी ?
क्यों नित पूछा करती  हो  ?
दुनियादारी के झंझट  अनगिन 
 इतना ही  नहीं समझती   हो  !
बिन मेरे गृहस्थी की गाड़ी
एक दिन भी चल ना पाती माँ !

ले बैठी जिद बच्चों -सी
सब कुछ इतना आसान है क्या?
क्या-क्या है मेरी  मजबूरी 
माँ मेरी अनजान है क्या!
नदिया सा नारी  का जीवन
प्रवाह संग बहती जाती माँ!

देख  पाऊँ तुम्हें दूर से
यही बात  कहाँ  कम है ?
स्नेहामृत के प्राण ऋणी हैं
देख तुम्हें  भीगा मन है , 
धीर बंधाते तभी तुझे ,
आँखें  भर- भर आती  माँ!

मेरी मुन्नी  , मेरी  लाड़ो,
बिटिया मेरी प्यारी तू ,
भले  है  अब बच्चों की माँ 
पर मेरी राजदुलारी तू , 
रह-रह भूले  नाम पुकारे 
बचपन मेरा सहलाती माँ |


दूभर  हुई   साँझ जीवन की 
जर्जर- सी देह काँप रही ,
जाने कैसी संभल रही है 
साँसों की लय हाँफ रही ,
वक्त की  आँधी से लड़ती
बुझती लौ सी लहराती माँ !!
 

 


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