
उड़ती जाती फुर्र - फुर्र ,
चाल चले मस्त लहरिया !
राह भूली थी शायद
तब इधर आई ,
देख हरे नीम ने भी बाहें फैलाई ;
फुदके पात- पात ,
देख हरे नीम ने भी बाहें फैलाई ;
फुदके पात- पात ,
हर डाल पे घूमें ,
कभी सो जाती
कभी सो जाती
बना डाली का तकिया !
'पावन , निर्मल प्रेम सदा ही -- रहा शक्ति मानवता की , जग में ये नीड़ अनोखा है - जहाँ जगह नहीं मलिनता की ;; मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है |
चाँद नगर सा गाँव तुम्हारा भला ! कैसे पहुँच पाऊँगी मैं ? पर ''इक रोज मिलूंगी तुमसे '' कह जी को बहलाऊंगी मैं | !! ...