
उड़ती जाती फुर्र - फुर्र ,
चाल चले मस्त लहरिया !
शायद राह भूली थी - तब इधर आई ,
देख हरे नीम ने भी बाहें फैलाई ;
फुदके पात- पात , हर डाल पे घूमें ,
कभी सो जाती बना डाली का तकिया !
'पावन , निर्मल प्रेम सदा ही -- रहा शक्ति मानवता की , जग में ये नीड़ अनोखा है - जहाँ जगह नहीं मलिनता की ;; मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है |
औरंगबाद के दिवंगत श्रमवीरों के नाम -- ऐसे सोये- सोते ही रहे- -- , भला! ऐसी भी क्या आँख लगी ? पहचान सके ना मौत कीआहट- अ...