मेरी प्रिय मित्र मंडली

गुरुवार, 17 फ़रवरी 2022

कहाँ आसान था

 

था वो मासूम-सा 
दिल का  फ़साना साहेब !
बहुत मुश्किल था पर
प्यार निभाना साहेब !

दुआ थी  ना कोई चाह  अपनी 
यूँ ही  मिल गयी उनसे  निगाह अपनी 
 बड़ा  प्यारा था उनका
सरेराह मिल जाना साहेब !

रिश्ता ना जाने कब का
लगता  करीब था
 उनसे  यूँ मिलना 
बस अपना नसीब था 
अपनों से प्यारा  हो गया था
 वो एक बेगाना साहेब ! 

वो सबके खास थे
पर अपने तो दिल के पास थे
हम इतराए हमें मिला
दिल उनका नजराना साहेब! 

हमसे निकलने लगे जब बच कर
खूब मिले ग़ैरों से हँस कर!
फिर भी रहा राह तकता,
दिल था अजब दीवाना साहेब!

बातें थी कई झूठी,
अफ़साने बहुत थे!
हुनर उनके पास
बहलाने के बहुत थे!
ना दिल सह पाया धीरे- धीरे
उनका बदल जाना साहेब! 

बहाए आँसू  उनकी खातिर 
और    उड़ाई  नींदें अपनी 
जो  लुटाया उन पर हमने 
 था अनमोल खजाना साहेब 

बहुत संभाला हमने खुद को
दर्द को पीया भीतर -भीतर
पर ना रुक पाया जब -तब
अश्कों का छलक जाना साहेब!

अलविदा  कहना  कहाँ आसान था ?
 टूटा जो रिश्ता वो मेरा गुमान था !
 पर,बेहतर था  तिल-तिल मरने से ,
एक दफ़ा मर जाना  साहेब !


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