क्षितिज
'पावन , निर्मल प्रेम सदा ही -- रहा शक्ति मानवता की , जग में ये नीड़ अनोखा है - जहाँ जगह नहीं मलिनता की ;; मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है |
मेरी प्रिय मित्र मंडली
रविवार, 20 मार्च 2022
शुक्रवार, 18 मार्च 2022
किसने रंग दीना डाल सखी ?
पीला, हरा,गुलाबी, लाल सखी!
किसने रंग दीना डाल सखी ?
मोहक चितवन, चंचल नयना,
अधरों पर रुके -रुके बयना!
ये जादू ना किसी अबीर में था
सब प्रेम ने किया कमाल सखी!
क्यों इतनी मुग्ध हुई गोरी?
कर सकी ना जो जोराजोरी,
यूँ बही प्रीत गंगधार नवल
सुध- बुध खो हुई निहाल सखी!
कलान्त हृदय हुआ शान्त,
महक उठा प्रेमिल एकान्त !
दो प्राण हो बहे एकाकार
बिसरे जग के जंजाल सखी!
बुधवार, 9 मार्च 2022
बस समय ने सुनी -- कविता
समर्पण और अभिसार की
सुनी समय ने बस कहानी
तेरे मेरे प्यार की !
पेड ने आँगन के
सुनना चाहा झुककर इसे,
देखना चाहा कभी
चिड़िया ने रुककर इसे
निहारने लगी , चली ना
एक मधु बयार की ,
सुनी समय ने बस कहानी
तेरे मेरे प्यार की !
मिल गए भीतर ही
जब देखने निकले तुम्हें ,
खो बैठे खुद को ही
जब ढूँढने निकले तुम्हें ,
पड़ गयी हर जीत फीकी
थी बात ऐसी हार की
तेरे मेरे प्यार की !
स्वाति बूँद से आ गिरे
हृदय के खाली सीप में!
चंदन वन महका गए,
जीवन के बीहड़ द्वीप में!
इस जन्म ना थी चाह कोई ;
है प्रार्थना युग- पार की !
सुनी समय ने बस कहानी
तेरे मेरे प्यार की
देखते ही बीत चले
दिन, महीने , साल यूँ ही !
ना फीके पडे रंग चाहत के
रहा तेरा ख्याल यूँ ही !
प्रगाढ़ थी लगन मन की
कहाँ बात थी अधिकार की ?
सुनी समय ने बस कहानी
तेरे मेरे प्यार की !!
सोमवार, 7 मार्च 2022
रहने दो कवि!(नारी विमर्श पर रचना )
🙏🙏
प्रस्तुत रचना,किसी अन्य कवि की शोषित नारी के लिए लिखी गई रचना पर,काव्यात्मक प्रतिक्रिया स्वरुप लिखी गई थी।
ना उघाड़ो ये नंगा सच
ढका ही रहने दो , कवि!
दर्द भीतर का चुपचाप
आँखों से बहने दो कवि!//
ये व्यथा लिखने में,
कहाँ लेखनी सक्षम कोई ?
लिखी गयी तो ,पढ़ इन्हें
कब आँख हुई नम कोई ?
संताप सदियों से सहा है
यूँ ही सहने दो कवि!
डरती रही घर में भी
ना बची खेत - क्यार में !
कहाँ- कहाँ ना लुटी अस्मत,
बिकी बीच बाज़ार में !
मचेगा शोर जग -भर में
ये जिक्र जाने दो ,कवि!
लिखने से ना होगा तुम्हारे
कहीं इन्कलाब कोई
रूह के जख्मों का मेरे
ना दे पायेगा हिसाब कोई
मौन रह ये रीत जग की
निभ ही जाने दो, कवि !
दर्द भीतर का चुपचाप
आँखों से बहने दो कवि!/
मंगलवार, 22 फ़रवरी 2022
कहो शिव!
कहो शिव! क्यों लौट गए खाली
मुझ अकिंचन के द्वार से तुम ?
क्यों कर गए वंचित पल में,
करुणा के उपहार से तुम!
दावानल-सी धधक रही,
विचलित उर में वेदना!
निर्बाध हो कर रही भीतर
खण्डित धीरज और चेतना!
सर्वज्ञ हो कर अनभिज्ञ रहे,
मेरे भीतर के हाहाकार से तुम!
आए जब तुम आँगन मेरे,
क्यों न तुम्हें पहचान सकी!
तुम्हीं थे चिर-प्रतीक्षित पाहुन
थी मूढ़ बड़ी ,ना जान सकी!
क्यों ठगा मुझे यूं छल-बल से
भर गए क्षणिक विकार से तुम!
एक भूल की न मिली क्षमा,
कर-कर हारी हरेक जतन!
कैसे इस ग्लानि से उबरूं ?
बह चली अश्रु की गंग-जमन!
ये क्लांत प्राण हों जाएं शांत,
जो कर दो मुक्त उर-भार से तुम!
गुरुवार, 17 फ़रवरी 2022
कहाँ आसान था
था वो मासूम-सा
दिल का फ़साना साहेब !
बहुत मुश्किल था पर
प्यार निभाना साहेब !
दुआ थी ना कोई चाह अपनी
यूँ ही मिल गयी उनसे निगाह अपनी
बड़ा प्यारा था उनका
सरेराह मिल जाना साहेब !
रिश्ता ना जाने कब का
लगता करीब था
उनसे यूँ मिलना
बस अपना नसीब था
अपनों से प्यारा हो गया था
वो एक बेगाना साहेब !
वो सबके खास थे
पर अपने तो दिल के पास थे
हम इतराए हमें मिला
दिल उनका नजराना साहेब!
हमसे निकलने लगे जब बच कर
खूब मिले ग़ैरों से हँस कर!
फिर भी रहा राह तकता,
दिल था अजब दीवाना साहेब!
बातें थी कई झूठी,
अफ़साने बहुत थे!
हुनर उनके पास
बहलाने के बहुत थे!
ना दिल सह पाया धीरे- धीरे
उनका बदल जाना साहेब!
बहाए आँसू उनकी खातिर
और उड़ाई नींदें अपनी
जो लुटाया उन पर हमने
था अनमोल खजाना साहेब
बहुत संभाला हमने खुद को
दर्द को पीया भीतर -भीतर
पर ना रुक पाया जब -तब
अश्कों का छलक जाना साहेब!
अलविदा कहना कहाँ आसान था ?
टूटा जो रिश्ता वो मेरा गुमान था !
पर,बेहतर था तिल-तिल मरने से ,
एक दफ़ा मर जाना साहेब !
शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2022
सरस्वती वंदना
🌷🌷सभी साहित्य प्रेमियों को बसन्त पंचमी की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं🙏🙏🌷🌷🙏🙏
मां सरस्वती, मैं सुता तुम्हारी ,
हूँ हीन छंद , रस, अलंकार से माँ !
फिर भी भर दी गीतों से झोली
ना भेजा खाली निज द्वार से माँ !
हाथ उठा ना माँगा कुछ तुमसे
बैठ कभी ना ध्याया माँ ,
पर वंचित ना रखा तुमने
करुणा के उपहार से माँ !
रहे शुद्धता मन ,वाणी ,कर्म में
रखना निष्पक्ष कवि -धर्म मेरा .
भावों में रहे सदा शुचिता
दूर रहूँ अहंकार से माँ !
संवाहक बनूँ सद्भावों की
रचूँ प्रेम के भाव अमिट,
भर बुद्धि -ज्ञान के दर्प-गर्व में
बचूँ व्यर्थ की रार से माँ !
यही आंकाक्षा मन में मेरे
रहूँ बन प्रिय संतान तुम्हारी !
ग्लानि कोई ना शेष हो भीतर
जब जाऊँ संसार से माँ !
🙏🙏🙏
शुक्रवार, 14 जनवरी 2022
मैं सैनिक
🙏🙏🌷🌷🙏🙏सेना दिवस के शुभ अवसर पर देश के वीर बांकुरों को शत- शत नमन, जो रण में वीर हैं तो विपदकाल में धीर हैं 🙏🙏🌷🌷🙏🙏
निर्भय हूँ और राष्ट्र को
आश्वासन देता निर्भय का ,
मृत्यु -पथ का राही मैं
चिर अभिलाषी अमर विजय का!
मिटा दूँ शत्रु नराधम को
जो छुप के घात लगाता ,
पल में डालूँ चीर
जब आँख से आँख मिलाता ,
टकराऊँ तूफानों से
मैं झोंका प्रचंड प्रलय का !
माटी मांगे खून
झट से कर्तव्य निभाता,
मातृभूमि की बलिवेदी पर ,
हँस अपना शीश चढ़ाता,
नश्वर जीवन से मोह कैसा ?
नियत पल अनंत विलय का !
मंजुल भाव लिए भीतर
फौलादी ये तन मेरा ,
भूला अपनों को इस धुन में
देशहित सर्वस्व समर्पण मेरा ,
वरण कर चला सतपथ का
ना सर झुके हिमालय का
मृत्यु -पथ का राही मैं
चिर अभिलाषी अमर विजय का!
मंगलवार, 11 जनवरी 2022
सब गीत तुम्हारे हैं
मेरे पास कहाँ कुछ था
ढाई आखर प्रेम तुम्हारा।
थके प्राणों का संबल जो,
खुली पोटली सपनों की ,
नये गगन में मनपाखी ने
बुधवार, 8 दिसंबर 2021
पुस्तक प्रकाशन -' समय साक्षी रहना तुम '
मां सरस्वती को नमन करते हुए ,मेरे सभी स्नेही पाठवृंद को मेरा सादर और सप्रेम अभिवादन। आप सभी के साथ, अपनी पहली पुस्तक ' समय साक्षी रहना तुम ' के प्रकाशन का, सुखद सामाचार साझा करते हुए अत्यंत खुशी हो रही है। आप सभी के सहयोग और प्रोत्साहन से ही इस काव्य-संग्रह का प्रकाशन संभव हो सका है, जिसके लिए आप सभी का हार्दिक आभार व्यक्त करती हूं। शब्द नगरी से शुरू होने वाली मेरी रचना-यात्रा कभी पुस्तक प्रकाशन तक पहुंच पायेगी, ये सोचा नहीं था। उन सभी सहयोगियों को धन्यवाद कहना चाहूंगी , जिन्होने बारम्बार पुस्तक प्रकाशित करवाने की प्रेरणा दी ।आदरणीय सरोज दहिया जी को विशेष आभार जिन्होने अपने कुशल संपादन में, काव्य संग्रह की त्रुटियों को सुधारने में स्नेहिल योगदान दिया।अंत में, आदरणीय विश्वमोहन जी को हृदय से प्रणाम करती हूं, उन्होंने अपनी यशस्वी लेखनी से मेरी साधारण-सी पुस्तक की भावपूर्ण भूमिका लिखकर इसे असाधारण बना दिया। इसके लिए उनकी सदैव कृतज्ञ रहूंगी।
आशा है मेरे ब्लॉग की तरह ही इस पुस्तक को भी आप सभी का स्नेह प्राप्त होगा। आप सभी को पुनः आभार और प्रणाम 🙏🙏
विशेष रचना
सब गीत तुम्हारे हैं
तुम्हारी यादों की मृदुल छाँव में बैठ सँवारे हैं मेरे पास कहाँ कुछ था सब गीत तुम्हारे हैं | मनअम्बर पर टंका हुआ है, ढाई आखर प्रेम ...