क्षितिज
'पावन , निर्मल प्रेम सदा ही -- रहा शक्ति मानवता की , जग में ये नीड़ अनोखा है - जहाँ जगह नहीं मलिनता की ;; मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है |
मेरी प्रिय मित्र मंडली
रविवार, 29 जून 2025
सोमवार, 12 अगस्त 2024
वहशी तुम!
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जिस कली को तुमने रौंदा
क्या वो देह कोई पत्थर की थी?
थी चाँदनी वह इक आँगन की ,
इज्जत किसी घर की थी |
वहशी! कुकृत्य क्या सोच किया?
अंधे होकर ऐयाशी में !
नोंच-खसोट ली देह कोमल
वासना की क्षणिक उबासी में!
तुमने कुचला निर्ममता से
वह पंखुड़ी केसर की थी !!
हुआ पिता का दिल टुकड़े-टुकड़े
देख लाडली को बदहाल में !
समझ ना पाया कैसे जा फँसी
मेरी चिड़िया वहशियों के जाल में !
सुध -बुध खो बैठी होगी माँ ,
जिसकी वो परी अम्बर की थी !!
दुष्टों के संहार को
बहुत लिए अवतार तुमने !
फिर मौन रहकर क्यों सुने ,
मासूम के चीत्कार तुमने ?
महिमा तो रखते तनिक ,
चौखट तेरे मंदिर की थी !!
साबित कर ही देते
हो सचमुच के भगवान् तुम ,
कहीं से आते बन उस दिन -
निर्बल के बल -राम तुम !
पापी का सीना चाक करते ,
बात बस पल भर की थी !!!!!!!!!!!
मंगलवार, 9 जुलाई 2024
कहो कोकिल!
ब्लॉग की सातवीं वर्षगाँठ पर मेरे स्नेही पाठकों को कोटि आभार और प्रणाम जिन्होंने मुझे विगत साल में ब्लॉग पर सक्रिय ना होने पर भी खूब पढ़ा |आप सब के स्नेह की सदैव ऋणी हूँ |🙏🙏🌹🌹
शनिवार, 8 जुलाई 2023
जिस दिन लिखूँगी
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जिदंगी की किताब मैं
लिख दूँगी पल-पल का
तब इसमें हिसाब मैं |
सौंप दूँगी फिर तुम्हें
चुपके से पढ़ लेना इसे!
अनकहे सब राज़ मैं!
व्यर्थ दौड़ाया उम्र भर,
तितलियों ने आस की।
ना बढ़ी उम्र एहसास की।
भीतर संजोये खाब मैं!
किस-किस ने सताया और
रहा जिसका इन्तजार सदा
जिदंगी की किताब मैं
लिख दूँगी पल-पल का
तब इसमें हिसाब मैं
शनिवार, 13 मई 2023
वीतरागी माँ
उसी प्यार से एक बार फिर
बैठ के मुझे निहारो माँ
मेरी लाड़ो मेरी चन्दा
कह फिर आज पुकारो माँ
आँखों में व्याप्त अजनबीपन
तनिक भी तो ना भाता माँ
यूँ विरक्त हो जाना तेरा
बरबस दिल दहलाता माँ
रखो हाथ जरा सर पे
ममता से मुझे दुलारो माँ !
थी कभी जीवटता की मूर्त
क्यों अब पग थके-थके से हैं!
जो कहना है झट से कह दो
जो होठों पर शब्द रुके-से हैं!
धीर ना धरता व्याकुल मनुवा
सीने से लगा पुचकारो माँ !
विरह-विगलित मन को
सदा सहलाया माँ तुमने!
जब सबने ठुकराया उस पल
गले लगाया माँ तुमने!
बिखर रही हूँ तिनका -तिनका
आ फिर मुझे संवारो माँ !
मंगलवार, 10 जनवरी 2023
माँ हिन्दी तू ही परिचय मेरा!
सभी को अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी दिवस की बधाई और शुभकामनाएं 🙏🙏🌹🌹
तुझ बिन रह जाती अधूरी-सी
माँ हिन्दी तू ही परिचय मेरा
तूने ही मिलाया खुद से
तू है स्नेहिल प्रश्रय मेरा!
प्रीत राग गाऊँ तुझ संग
सृजन का आधार तुम ही!
समर्पित अरूप-अनाम को जो
हो पावन मंगलाचार तुम ही!
तुम सागर और सरिता सी मैं
आ तुझमें हुआ विलय मेरा!
माधुर्य कण्ठ का है तुझसे ,
तेरा शब्द-शब्द है यश मेरा !
ढल कविता में जो बह निकला
तू अलंकार, नवरस मेरा!
अतुलकोश सहेज भावों का
है कृतज्ञ बड़ा हृदय मेरा!
तुलसी के हिय बसी तू ही
सूर का तू ही भ्रमर गीत!
अनकही पीर मीरा की तू
रचती जो प्रेम की नवल रीत!
मुझसे भी अटूट बंधन तेरा
तुझ पर गौरव अक्षय मेरा!
माँ हिन्दी तू ही परिचय मेरा!
🙏🙏
सोमवार, 5 दिसंबर 2022
प्रेम
प्रेम तू सबसे न्यारा .
कहाँ तुझसा कोई प्यारा!
शब्दातीत, कालातीत,
ज्ञानातीत तू ही!
इश्क मुर्शिद का तुझसे,
राधा की प्रीत तू ही !
चमक रहा कब से क्षितिज पे
बनकर ध्रुव तारा!
मीठा ना तुझसा छ्न्द कोई.
ना बाँध सके अनुबंध कोई!
उन्मुक्त गगन के पाखी-सा ,
सह सकता नहीं प्रतिबंध कोई
कोई रोके,रोक ना पाये
तोड़ निकले हर इक कारा!
आन मिले अनजान पथिक-सा
साथ चल दे जाने किसके .
अरूप और अदृश्य तू ,
नहीं आता सबके हिस्से !
विरह के आनंद में बह जाता
बन कर अंसुवन धारा !
चित्र -पाँच लिंक से साभार
शुक्रवार, 11 नवंबर 2022
क्या दूँ प्रिय उपहार तुम्हें?
प्रिय क्या दूँ उपहार तुम्हें ?
जब सर्वस्व पे है अधिकार तुम्हें!
मेरी हर प्रार्थना में तुम हो,
निर्मल अभ्यर्थना में तुम हो!
तुम्हें समर्पित हर प्रण मेरा,
माना जीवन आधार तुम्हें!
मुझमें -तुझमें क्या अंतर अब!
कहां भिन्न दो मन-प्रांतर अब
ना भीतर शेष रहा कुछ भी,
सब सौंप दिया उर भार तुम्हें!
मेरे संग मेरे सखा तुम्हीं
मन की पीड़ा की दवा तुम्हीं
बसे रोम रोम तुम ही प्रियवर
रही शब्द शब्द सँवार तुम्हें
दूं प्रिय! उपहार तुम्हें?
जब सर्वस्व पे है अधिकार तुम्हें
बुधवार, 21 सितंबर 2022
एक दीप तुम्हारे नाम का ------- नवगीत
अनगिन दीपों संग आज जलाऊँ
एक दीप तुम्हारे नाम का साथी ,
तुम्हारी प्रीत से हुई है जगमग
क्या कहना इस शाम का साथी !!
जब से तुम्हें साथी पाया है
तुमसे कहाँ अब अलग रही मैं ?
खुद को खो तुमको पाया है
भीतर तुम हो ,बाहर तुम हो -
तू गोविन्द है मन धाम का साथी !!
ये अनुराग तुम्हारा साथी
जाने कौन गगन ले जाये ?
पुलकित हो बावरा मन मेरा
आनंद शिखर छू जाये ,
तुम बिन अधूरा परिचय मेरा
तू प्रतीक मेरे स्वाभिमान का साथी !!
मनबैरागी बन तजूं रंग सारे
मन रंगूँ तेरी प्रीत के रंग में ,
साजन रहे अक्षुण साथ तुम्हारा
जीवनपथ पे चलूँ संग-संग में
बिन तेरे ये जीवंन मेरा
है मेरे किस काम का साथी ?
अनगिन दीपों संग आज जलाऊँ
एक दीप तुम्हारे नाम का साथी ,
तुम्हारी प्रीत से हुई है जगमग
क्या कहना इस शाम का साथी !!
स्वरचित -- रेणु
चित्र -- साभार गूगल --
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Gप्लस से साभार टिप्पणी --
सोमवार, 22 अगस्त 2022
जीवन बोध
विशेष रचना
आज कविता सोई रहने दो !
आज कविता सोई रहने दो, मन के मीत मेरे ! आज नहीं जगने को आतुर सोये उमड़े गीत मेरे ! ना जाने क्या बात है जो ये मन विचलित हुआ जाता है ! अना...
