
पथिक ! मैंने क्यों बटोरे
नेह भरे वो पल तुम्हारे ?
यतन कर - कर के हारी ,
गए ना मन से बिसारे !
कब माँगा था तुम्हें
किसी दुआ और प्रार्थना में ?
तुम कब थे समाहित
मेरी मौन अराधना में ?
आ गये अपने से बन क्यों
बंद ह्रदय के द्वारे ! !
हँसी- हँसी में लिख दिए
दर्द संग अनुबंध मैंने ,
थाम रखे जाने कैसे
आँसुओं के बन्ध मैंने ;
टीसते मन को लिए
संजोये भीतर सागर खारे !!
क्यों उतरे मन के तट-
एक सुहानी प्यास लेकर?
अनुराग गंध से भरे
अप्राप्य से मधुमास लेकर ;
क्यों ना गये राह अपनी
समेट मधु स्वप्न सारे ! !
ना था अधिकार क्यों रखी
व्यर्थ मिलन की चाह मैंने ?
किस आस पर निहारी
पहरों तुम्हारी राह मैंने ?
आँचल में क्यों भर बैठी
भ्रामक से चाँद सितारे !!
चित्र ---- गूगल से साभार --