मेरी प्रिय मित्र मंडली

शनिवार, 24 नवंबर 2018

रूमानियत

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इस   क़दर अपना बनाया आपने  ,
कर दिया जग से पराया आपने  !

था दर्द की इन्तहा में  डूबा  ये दिल ,
 चाहत का  मरहम लगाया आपने !

 मेरे  भीतर ही था सोया कहीं ,
आ  वो बचपन   लौटाया  आपने! 

बदल गए मंज़र कायनात के,
वो हसीं जादू जगाया आपने  !

हुआ एक पल भी दूभर बिन आपके ,
 खुद का यूँ आदी बनाया आपने !

 इस  जमीं से आगे कब  था  मेरा जहाँ '
 आसमां पे ला बिठाया आपने !!

 रूमानियत का  है करिश्मा आपकी, 
मुझसे ही मुझको  मिलाया आपने !



शनिवार, 17 नवंबर 2018

आये अतिथि आँगन मेरे-- कविता -

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   आये  अतिथि  आँगन मेरे ,
 महक  उठे   घर - उपवन मेरे !!

छलके  खुशियों के पैमाने 
 गूँजें मंगल - गीत सुहाने , 
आज ना पड़ते  पाँव धरा पे  
भूल गये   सब दर्द पुराने ;
 खिला है कोना -कोना घर का
पतझड़ बन  गये फागुन  मेरे !!

जिस  पल  को थे नैना तरसे ,
देख उसे ये  तन - मन   हरषे ;
खूब निहारूं और  इतराऊँ -
आँगन आज मिलन -रंग  बरसे ;
अपनों  ने जब गले लगाया 
नैना बन गये सावन मेरे !!

 जगमग दीप द्वार  सजे  हैं ,
 झिलमिल  बन्दनवार  सजे  हैं ;
 पथ बिखरी   गुलाब पांखुरी 
 सुवासित गेंदाहार सजे हैं   ;
देव  अतिथि    तुम हो  मेरे !
 स्वीकार करो अभिनंदन  मेरे  !! 
  
 आये अतिथि आंगन मेरे ,
 महक  उठे   घर - उपवन मेरे !!!!!!!

चित्र -- गूगल से साभार -- 

विशेष रचना

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