मेरी प्रिय मित्र मंडली

शनिवार, 28 अप्रैल 2018

मैं श्रमिक --- कविता --

मैं श्रमिक  ---  कविता  --
इंसान हूँ मेहनतकश मैं  
नहीं लाचार या बेबस मैं !

किस्मत हाथ की रेखा मेरी  

रखता मुट्ठी में कस मैं !

बड़े गर्व से खींचता
  जीवन का ठेला ,
संतोषी मन देख रहा
अजब दुनिया का खेला !

गाँधी सा सरल चिंतन , 
मैले कपडे उजला मन ! 
श्रम ही स्वाभिमान मेरा , 
हर लेता पैरों का कम्पन !

भीतर मेरे गाँव बसा
है कर्मभूमि नगर मेरी ! 
हौंसले कम नहीं  हैं   
कठिन भले ही डगर मेरी !

चित्र --- गूगल से साभार 


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