
क्या तुमसे लिखूँ परिचय मेरा ?
तुम पावन स्नेह प्रश्रय मेरा !!
कब स्वर में मुखरित हो पाते हो
शब्दों में कहाँ समाते हो ?-
मैं हँसूं- हँस में हँस जाते -
बन घन नैना छलकाते हो
सपनों से भर जाते कैसे ?
सूना पलक- निलय मेरा !!
क्यों विकल कर जाता मन को
अरूप , अनाम सा ये नाता
जैसे भाये तुम अनायास
कहाँ यूँ मन को कोई भाता ?
पा तुम्हें सब भूल गया है -
बौराया ह्रदय मेरा !!
पुलकित सी इस प्रीत - प्रांगण में
हो कर निर्भय मैं विचरूं
भर विस्मय में तुम्हें निहारूं -
रज बन पथ में बिखरूं ;
हुई खुद से अपरिचित सी मैं -
यूँ तुझमें हुआ विलय मेरा !!
क्या तुमसे लिखूँ परिचय मेरा ?
तुम पावन स्नेह प्रश्रय मेरा !!!
चित्र और विषय -- पांच लिंकों से साभार |
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