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बुधवार, 2 सितंबर 2020

चलो नहायें बारिश में - बाल कविता


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 चलो  नहायें बारिश में  !

लौट कहाँ  फिर आ पायेगा ?

ये बालापन अनमोल बड़ा ,
जी भर आ भीगें  पानी में 
झुलसाती तन धूप बड़ा ; 
गली - गली  उतरी  नदिया 
 कागज की  नाव बहायें बारिश में !
चलो  नहायें बारिश में !

झूमें डाल- डाल  गलबहियाँ, 
गुपचुप करलें  कानाबाती  
 करेंगे मस्ती और मनमानी 
सीख आज हमें ना भाती ,
 लोट - लोट  लिपटें माटी से 
 और गिर -गिर जाएँ बारिश में ! 
चलो  नहायें बारिश में !

 भरेंगी खाली ताल -तलैया 
सूखे खेत हरे कर  देंगी 
अंबर से  झरती  टप- टप  बूँदें 
हरेक दिशा शीतल कर  देंगी 
धुल -धुल  होगा गाँव  सुहाना 
चलो घूम के आयें बारिश में 
चलो  नहायें बारिश में 

घर -आँगन तालाब बन गये  
छप्पकछैया   करें - जी  चाहे 
उमड़ -घुमडते  भाते बादल 
ठंडी  हवा तन -मन सिहराए 
बेकाबू हुआ  उमंग भरा मन   
चलो नाचें -गायें बारिश में 
चलो  नहायें बारिश में 

चित्र - गूगल से साभार
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