मौसम आयेंगे -जायेंगे पर ,
वे वापस ना आयेंगे ।
घर आँगन में नौनिहाल,
अब ना खिलखिलाएँगे ।
गर्म हवा से भी न कभी ,
छूने दिया था जिन्हें ,
सोच ना था ,
अव्यवस्था के अग्नि - कुंड
उन्हें भस्म कर जाएँगे ।
जीने की खातिर जिन्होंने,
लड़ी जंग आखिरी दम तक
कब वो मन की आँखों से ।
ओझल हो पायेंगे ?
रंग हुए फीके होली के,
खो गयी ख़ुशी दीवाली की ।
बुझे आँगन के दीप ,
कैसे जश्न मन पाएँगे ?
हर आहट पे होगा भ्रम ,
आँखों के तारों के आने का ,
मानो कहीं से जिगर के टुकड़े
आ गले लग जायेंगे ।
अश्रुपूरित नमन उन सुकुमार नौनिहालों जो जीने की खातिर आखिरी साँस तक लड़े !!!!!!!