
कल थे पिता - पर आज नहीं है -
माँ का अब वो राज नहीं है !
दुनिया के लिए इंसान थे वो ,
पर माँ के भगवान् थे वो ;
बिन कहे उसके दिल तक जाती थी
खो गई अब वो आवाज नहीं है ! !
माँ के सोलह सिंगार थे वो ,
माँ का पूरा संसार थे वो ;
वो राजा थे - माँ रानी थी --
छिन गया अब वो ताज नहीं है ! !
वो थे हम पर इतराने वाले ,
प्यार से सर सहलाने वाले ;
उठा है जब से उनका साया -
किसी को हम पर नाज नहीं है
कल थे पिता पर आज नहीं है -
माँ का अब वो राज नहीं है!!!!!!!!!!!!!
चित्र ------ गूगल से साभार |
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बहुत ही उम्दा रचना आदरणीया👌👌👌👏👏👏 पिता, शब्द ही ऐसा है, अनगिनत चीजें आती हैं मन में उनकी प्रशंसा को, मगर शुरुआत कहाँ से करें पता ही नहीं चलता। श्रद्धावनत नमन🙏
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार आपका प्रिय अमित |
हटाएंबहुत ही भावपूर्ण ...
जवाब देंहटाएंमाँ के ऊपर बहुत कुछ लिखा गया है पर पिता हमेशा गम्भीर चुप्पी ओड कर नेपथ्य में रहते हैं ...
माँ के लिए पिता का अहसास साँसों की तरह होता है ...
उनका न होना जैसे नींव का हिल जाना ...
गहरा अहसास छुपा है इस लाजवाब रचना में ...
आदरणीय दिगम्बर जी -आपके शब्द अनमोल हैं हमेशा की तरह | बस नमन |
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (18-06-2018) को "पूज्य पिता जी आपका, वन्दन शत्-शत् बार" (चर्चा अंक-3004) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
आदरणीय राधा जी -सदर आभार |
हटाएंगहरे भाव , बेहद हृदयस्पर्शी रचना दी..शब्द मन के भावों को छू गये...वाह्ह्ह...👌👌👌
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार प्रिय श्वेता |
हटाएंशब्द और भाव हृदयस्पर्शी..
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया।
प्रिय पम्मी बहन देर से उत्तर के लिए क्षमा प्रार्थी | सस्नेह आभार आपका |
हटाएंरेणू बहन निशब्द हूं मै आपकी इस अतुल्य रचना पर सरलता से आपने वो सब कह डाला जो मन की परतो मे बंद रखते हैं सभी। बहुत बहुत सुंदर और हृदय स्पर्शी रचना।
जवाब देंहटाएंप्रिय कुसुम बहन -- ह्रदय तल से आभार आपका |
हटाएंबहु सुंदर !
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय हर्ष जी |
हटाएंआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' १८ जून २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
जवाब देंहटाएंटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति मेरा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'
निमंत्रण
विशेष : 'सोमवार' १८ जून २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक के लेखक परिचय श्रृंखला में आपका परिचय आदरणीया 'शशि' पुरवार जी से करवाने जा रहा है। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' १८ जून २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
जवाब देंहटाएंटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति मेरा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'
निमंत्रण
विशेष : 'सोमवार' १८ जून २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक के लेखक परिचय श्रृंखला में आपका परिचय आदरणीया 'शशि' पुरवार जी से करवाने जा रहा है। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
प्रिय ध्रुव -- सस्नेह आभार आपके अतुलनीय सहयोग के लिए |
हटाएंसत्य पर कड़वा रेनू जी ...
जवाब देंहटाएं🙏🙏🙏🙏🙏🙏
चुभती सालती हर पंक्ति
हर लफ्ज आह भरता सा है
हाय विधाता बिना पिता के
सब कितना सुना सा है !
प्रिय इंदिरा बहन आपकी काव्यात्मक टिप्पणी वो कह गई जो मैं ना कह पाई | रचना से भी मार्मिक इन पंक्तियों के लिए हार्दिक स्नेह भरा आभार |
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरुवार 21 जून 2018 को प्रकाशनार्थ 1070 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
आदरणीय रवीन्द्र जी सादर आभार आपका |
हटाएंमाँ का पूरा संसार थे वो....
जवाब देंहटाएंवाह!!!
वो राजा थे माँ रानी थी
बहुत लाजवाब एवं हृदयस्पर्शी रचना रेणु जी ....
बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं...
उठा है जब से उनका साया -
जवाब देंहटाएंकिसी को हम पर नाज नहीं है
बहुत ही हृदयस्पर्शी रचना.....
वाह!!!
लाजवाब रचना के लिए बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं रेणु जी!
प्रिय सुधा बहन --आपकी उत्साहित टिप्पणीं हमेशा मनोबल बढाती है | सस्नेह आभार आपका |
हटाएंकल थे पिता पर आज नहीं है -
जवाब देंहटाएंमाँ का अब वो राज नहीं है!!!!!!!!!!!!!.... ये लाइने अपने आप में पूरी कविता है रेनू जी , बहुत मार्मिक रचना
आदरणीय वन्दना जी -- आपकी सराहना से अभिभूत हूँ | सस्नेह आभार आपका |
हटाएंपिता को घर की छ्त कहा गया है। पिता के होने पर कोई घर की ओर आँख उठाकर भी नहीं देख सकता। आपने पिता के अभाव को अत्यंत मार्मिक शब्दों में व्यक्त किया है रेणु बहन....अव्यक्त व्यथा की अभिव्यक्ति जब होती है तब हृदय को भेद देती है।
जवाब देंहटाएंप्रिय मीना बहन -- इस अभाव की पूर्ति कभी संभव नहीं होती |इस छत की सुरक्षा हे निराली है बाकि तो हरि- इच्छा |आपने अतिरिक्त स्नेह की हमेशा आभारी रहूंगी |
हटाएंमाँ का पूरा संसार थे वो....
जवाब देंहटाएंवाह!!!
वो राजा थे माँ रानी थी
बहुत अतुल्य एवं हृदयस्पर्शी रचना रेणु जी ....
आपके स्नेहभरे प्रोत्साहित करते शब्दों के लिए आभारी हूँ प्रिय संजय जी |
हटाएंबहुत ही हृदयस्पर्शी रचना प्रिय सखी रेनू जी ।
जवाब देंहटाएंप्रिय शुभा जी -- सस्नेह आभार आपका |
हटाएंसच कहा, पिता हमारे तो आधार स्तम्भ हैं पर माँ के तो पुरे संसार होते हैं। बहुत ही सुंदर ,भावपूर्ण रचना सखी ,पितृदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार सखी |
हटाएंबहुत सुन्दर और दिल को छू लेने वाली कविता रेणु जी.
जवाब देंहटाएंलेकिन पितृ-दिवस महज़ एक दिन क्यों? साल के बाक़ी 364 दिन क्या हमको पिता की सघन छाँव नहीं चाहिए?
और माँ के लिए तो बच्चों के पिता अर्थात् अपने पति के बिछोह की व्यथा को शब्दों में व्यक्त ही नहीं किया जा सकता. माँ के बिना पिता अधूरा हो जाता है और पिता के बिना माँ तो बस, रीती ही रीती रह जाती है.
आदरणीय गोपेश जी -- पितृदिवस एक दिन के लिए मनाना तो मात्र एक औपचारिकता है , अन्यथा तो जीवन में पिता की सत्ता अक्षुण है | रचना पर आपकी सारगर्भित विवेचना अनमोल है | सादर आभार आपका
हटाएंबहुत सुंदर और दिल को छूती रचना, रेणु दी।
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार प्रिय ज्योति जी |
जवाब देंहटाएंअति उत्तम रचना, आपके लेखन में वाकई शक्ति है।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ......
सुस्वागतम और सस्नेह आभार प्रिय मुकेश जी |
हटाएंआप रिश्तो को बहुत बेहतरीन बेहतरीन ढंग से लिखती हैं.. आपके अनुभव का सारा संसार सिमट आता है आपकी लेखनी में बहुत ही शानदार लिखा आपने कल तक पिता थे आज नहीं वाह दिल को छू गई आपकी रचना
जवाब देंहटाएंप्रिय अनु, रचना का मर्म समझने के लिए आभारी हूँ। बहुत बहुत शुक्रिया और स्नेह🌹🌹🌷🌷
हटाएंआपके इस सृजन में माँँ और पुत्री दोनों की पीड़ा समाहित है। बाबुल का गृह त्यागने के बाद पुत्री को तो पिया का घर मिल जाता है , लेकिन माँँ..? माँँ के लिए तो उसका पति ही सब कुछ है । इसके पश्चात जो सूनापन उसके जीवन में आता है,उसकी पूर्ति संतान क्या भगवान भी नहीं कर पाता है।
जवाब देंहटाएंस्व० पिता जी को समर्पित आपकी यह रचना अत्यंत भावपूर्ण हैं रेणु दी ।
आपने सच लिखा शशि भाई। हार्दिक आभार आपके स्नेहासिक्त शब्दों के लिए 🙏🙏🙏🙏
हटाएंवाह बहुत खूब लिखा है आपने ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार दीपा जी 🙏🙏🌹🌹
हटाएंदिल को छूती बहुत ही सुंदर रचना, रेणु दी।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार प्रिय ज्योति जी 🙏🙏🌷🌷
हटाएंहृदय को छूती और एहसासों को जगाती! नमन!!!
जवाब देंहटाएंसादर आभार आपका |
हटाएंआदरणीया मैम,
जवाब देंहटाएंअत्यंत भावुक रचना है यह। भीतर से निः शब्द कर दिया। कोई योग्य टिप्पणी नहीं। यह कविता सदा यह याद दिलाती रहेगी कि हमारे माता पिता भगवान के रूप होते हैं। हॄदय से आभार।
प्रिय अनंता , आपकी ये निश्छल प्रतिक्रिया मेरे लिए अनमोल है | खुश रहो | मेरा प्यार |
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