मीत कहूं,मितवा कहूं ,
क्या कहूँ तुम्हें मनमीत मेरे ?
नाम तुम्हारे ये शब्द मेरे
तुम्हें समर्पित सब गीत मेरे !!
हर बात कहूं तुमसे मन की
कह अनंत सुख पाऊँ मैं ,
निहारूं नित मन- दर्पण में
तुम्हें स्व -सम्मुख पाऊँ मैं;
सजाऊँ ख्वाब नये तुम संग -
भूल, ये गीत -अतीत मेरे !!
सृष्टि में जो ये प्रणय का
अदृश्य सा महाविस्तार है ,
जो युगों से है अपना
वही इसका दावेदार है ,
बंधने नियत थे तुम संग
जन्मों के बंध पुनीत मेरे !!
अनुराग बन्ध में सिमटी मैं
यूँ ही पल- पल जीना चाहूँp ,
सपन- वपन कर डगर पे साथी
संग तुम्हारे चलना चाहूँ ,
तुम्हारे प्यार से हुए हैं जगमग
ये नैनों के दीप मेरे !!
नाम तुम्हारे हर शब्द मेरे
तुम्हें समर्पित सब गीत मेरे !!
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धन्यवाद शब्दनगरी --------
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रेणु जी बधाई हो!,
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