![सांध्य दैनिक मुखरित मौन](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj8izkp9q2aXU9Nrf7gSHsN4koAUsje3_dRd7AcP2wDQ2-G1dII7jE7QHHodpUQJjXGGpZAaBaPUWc8vGdiSGDcIHlIB4GLE_VW6Qrh6feTEwjvoRc9uZApAcy_rv3ZvtA80IYoyWsN9jQS/s200/muKhriT.jpg)
जीवन की ढलती साँझ में
गीत मेरे सुनने आना
मन के तटपर यादों की
सीपियाँ चुनने आना !
हो जाए शायद आँखें नम
गुज़र यादों के गलियारों से,
टीस उभरेगी पतझड़ की
कर सामना बीती बहारों से;
दुनियादारी से ना मिलना
याद आये तब मिलने आना!
मन के तटपर यादों की
सीपियाँ चुनने आना !
सुन लेना हर दर्द मन का
बन सखा घनश्याम तुम
थके प्राणों को दे छाँव अपनी
देना तनिक आराम तुम;
कलुषता हर अंतस की
भाव मधुर भरने आना !
मन के तटपर यादों की
सीपियाँ चुनने आना !
लिख जिन्हें पास अपने
छिपा रख लेती हूँ मैं
एकांत में कभी इन्हें
पढ़ रो कभी हँस देती हूँ मैं
ख़त तुम्हारे नाम के
चुपके से कभी पढने आना
मन के तटपर यादों की
सीपियाँ चुनने आना !
स्वरचित