गाय बिन बछड़ा रहता उदास बड़ा ,
डूबा है किसी फ़िक्र में ,दिखता हताश बड़ा !
जाने क्यों इसके लिए निष्ठुर बना विधाता ?
क्रूर काल ने जन्मते छीन ली इसकी माता ;
अबोध , असहाय ये नन्हा सा बछडा-
बड़ी करुणा से तकता ,आँखे नम कर जाता ;
पेट पीठ में लगा लोग कहें बड़ा अभागा,
मूक वेदना भांप मन होता निराश बड़ा !
मूक वेदना भांप मन होता निराश बड़ा !
होती माँ जो आज चाट कर लाड़ जताती .
होता तनिक भी दूर जोर से बड़ा रंभाती ;
स्नेह से पिलाती दूध, जरा भूखा जो दिखता .
ममता से रखती खूब - माँ बनकर इतराती ;
कुलांचे भरता नन्हा , दिखती उमंग बचपन की ,
दिखता भोली आँखों से मीठा उल्लास बड़ा !
होता तनिक भी दूर जोर से बड़ा रंभाती ;
स्नेह से पिलाती दूध, जरा भूखा जो दिखता .
ममता से रखती खूब - माँ बनकर इतराती ;
कुलांचे भरता नन्हा , दिखती उमंग बचपन की ,
दिखता भोली आँखों से मीठा उल्लास बड़ा !
काश ! होती जुबान ,तो बात मन की कह पाता,
माँ को करता याद - बड़ा ही रुदन मचाता ;
स्वामी विकल -स्नेह से खूब सहलाये ,
लगती तनिक जो भूख बोतल से दूध पिलाता ;
माँ की कमी न पर वो पूरी कर पाए
भले है मन को इस गम का एहसास बड़ा ! !!!!!!