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सोमवार, 18 सितंबर 2017

सुनो गिलहरी --------- कविता

सुनो    गिलहरी ------------ कविता
पेड़ की फुनगी के मचान से 
क्या खूब झांकती  शान से ,
देह इकहरी काँपती ना  हाँफती
निर्भय हो घूमती  स्वाभिमान से ! 

 पूँछ उठाये ,चौकन्नी निगाहें  ,  
चल देती  जिधर मन आये 
छत , दीवार , तार या खंबा -- 
बड़ी सरल हैं तुम्हारी राहें ! 

जहाँ जी चाहे आँख मूँद सो लेती
मसला पानी है ना रोटी ;
भूख में फल पेट भर खाती
माँ की रखी कुजिया से 
झटपट पानी पी जाती ! 

घूमती डाल - डाल और पात - पात 
मलाल नहीं कोई नहीं है साथ ,
आज की चिंता ना कल की फ़िक्र  
देख लिए हैं पेड़ के सारे फल चखकर ,

फुदकती मस्ती में 
 हो बड़ी सयानी
बन बैठी हो पूरी 
बगिया की महारानी ,
सुबह  ,शाम ना देखती दुपहरी  
दुनिया में तुम सबसे सुखी हो गिलहरी!! 

स्वरचित --रेणु
चित्र -- गूगल से साभार -- 

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 गूगल से साभार -- अनमोल टिप्पणी --

दुनिया मे तुम सबसे सुखी हो गिलहरी!
जीवन का दर्शन, तुम जीती हर घड़ी ।
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