पेड़ की फुनगी के मचान से
क्या खूब झांकती शान से ,
देह इकहरी काँपती ना हाँफती
निर्भय हो घूमती स्वाभिमान से !
पूँछ उठाये ,चौकन्नी निगाहें ,
चल देती जिधर मन आये
छत , दीवार , तार या खंबा --
बड़ी सरल हैं तुम्हारी राहें !
जहाँ जी चाहे आँख मूँद सो लेती
मसला पानी है ना रोटी ;
भूख में फल पेट भर खाती
माँ की रखी कुजिया से
झटपट पानी पी जाती !
घूमती डाल - डाल और पात - पात
मलाल नहीं कोई नहीं है साथ ,
आज की चिंता ना कल की फ़िक्र
देख लिए हैं पेड़ के सारे फल चखकर ,
फुदकती मस्ती में
हो बड़ी सयानी
बन बैठी हो पूरी
बगिया की महारानी ,
सुबह ,शाम ना देखती दुपहरी
दुनिया में तुम सबसे सुखी हो गिलहरी!!
स्वरचित --रेणु
चित्र -- गूगल से साभार --
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गूगल से साभार -- अनमोल टिप्पणी --
स्वरचित --रेणु
चित्र -- गूगल से साभार --
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गूगल से साभार -- अनमोल टिप्पणी --
दुनिया मे तुम सबसे सुखी हो गिलहरी!
जीवन का दर्शन, तुम जीती हर घड़ी ।
जीवन का दर्शन, तुम जीती हर घड़ी ।
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